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________________ प्रस्तावना (क) स्थेयाज्जातजयध्वजाप्रतिनिधिः प्रोद्भूतभूरिप्रभुः, प्रध्वस्ताखिल-दुर्नय-द्विषदिभिः सन्नीति-सामर्थ्यतः सम्मार्गस्त्रिविधः कुमार्गमथनोऽर्हन् वीरनाथः श्रिये, शश्वत्संस्तुतिगोचरोऽनद्यधियां श्रीसत्यवाक्याधिपः॥१॥ (ख) प्रोक्तं युक्त्यनुशासनं विजयिभिः स्याद्वादमार्गानुगैविद्यानन्दबुधैरलङ्कृतमिदं श्रीसत्यवाक्याधिपैः ॥२॥ -युक्त्यनुशासनालङ्कार-प्रशस्ति । (ग) जयन्ति निजिताशेषसर्वथैकाम्तनीतयः । सत्यवाक्याधिपाः शश्वद्विधानन्दा जिनेश्वराः ॥ -प्रमाणपरीक्षा मङ्गलपद्य । (घ) विद्यानन्दैः स्वशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिद्ध्यै । -आप्तपरी० श्लो० १२३ । विद्यानन्दके प्रमाणपरीक्षा और युक्त्यनुशासनालङ्कारके प्रशस्तिउल्लेखोंपरसे बा० कामताप्रसादजी भी यही लिखते हैं। इससे मालूम होता है कि विद्यानन्द गङ्गनरेश शिवमार द्वितीय ( ई० ८१० ) और राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम ( ई० ८१६ ) के समकालीन हैं। और उन्होंने अपनी कृतियाँ प्रायः इन्हींके राज्य-समयमें बनाई हैं। विद्यानन्दमहोदय और तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक तो शिवमार द्वितीयके और आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा तथा युक्त्यनुशासनालङ कृति ये तीन कृतियाँ राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम (ई०८१६-८३० ) के राज्य-कालमें बनी जान पड़ती है। अष्टसहस्री, जो श्लोकवात्तिकके बादकी और आप्तपरीक्षा आदिके पूर्वकी रचना है, करीब ई० ८१०-८१५ में रची गई प्रतीत होती है। तथा पत्रपरीक्षा, श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र और सत्यशासनपरीक्षा ये तीन रचनाएँ ई० सन् ८३०-८४० में रची ज्ञात होती हैं। इससे भी आ० विद्यानन्दका समय पूर्वोक्त ई० सन् ७७५ से ई० सन् ८४० प्रमाणित होता है । यहाँ एक खास बात और ध्यान देने योग्य है। वह यह कि शिवमारके पूर्वाधिकारी पश्चिमी गङ्गवंशी राजा श्रीपुरुषका शकसं० ६९८, ई० सन् ७७६ का लिखा हुआ एक दानपत्र मिला है जिसमें उसके द्वारा श्री १. जैन सिद्धान्तभास्कर भाग ३, किरण ३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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