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________________ प्रस्तावना दो-एक जगह और भी 'पूर्ववत्' आदि अनुमानसूत्रके त्रिसूत्रीकरणरूप व्याख्यानका उल्लेख किया है और उसका समालोचन किया है । उसपरसे भी विद्यानन्दको न्यायवात्तिककारका ही मत-निरसन-अभिप्रेत मालूम होता है। अतः उक्त उल्लेखमें ग्रन्थकारके द्वारा दिया गया 'टीका' शब्द नहीं होना चाहिये-प्रतिलेखकके द्वारा ही वह भ्रान्तिसे अधिक लिखा गया जान पड़ता है। प्रतिलेखक न्यूनाधिक लिख जाना जैसी भूलें बहुधा कर जाते हैं। अथवा ग्रन्थकारका भी यदि दिया हुआ 'टीका' शब्द हो तो उससे उन्हें तात्पर्यटोका विवक्षित रही हो, सो बात नहीं मालूम होती; क्योंकि उनके उत्तरग्रन्थका सम्बन्ध न्यायवात्तिकसे ही है-तात्पर्यटीकासे नहीं। अतः 'न्यायवार्तिकटीका' शब्दका 'न्यायवात्तिककी टीका' ऐसा अर्थ न करके 'न्यायवात्तिकरूप टीका' ऐसा अर्थ करना चाहिए, क्योंकि न्यायवात्तिक भी न्यायसूत्र और न्यायभाष्यकी टीका ( व्याख्या ) है। इस तरह कोई असङ्गति अथवा असम्बद्धता नहीं रहती। अतएव विद्यानन्दके ग्रन्थोंमें वाचस्पति मिश्रका खण्डन न होनेसे वे उनके पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं। वाचस्पति मिश्रका समय ई० सन् ८४१ निश्चित है । अतः विद्यानन्दकी उत्तरावधि ई० सन् ८४० होना चाहिए। वाचस्पति मिश्रके समकालीन न्यायमंजरीकार जयन्तभट्ट भी हुए हैं। उनका भी विद्यानन्दके ग्रन्थोंमें कोई समालोचन उपलब्ध नहीं होता। यदि विद्यानन्द उनके उत्तरकालीन होते तो वे न्यायदर्शनके इन ( वाचस्पतिमिश्र और जयन्तभट्ट जैसे प्रमुख ) विद्वानोंका भी प्रभाचन्द्रकी तरह आलोचन करते। इस तरह पूर्ववर्ती ग्रन्थकारोंके समालोचन और उत्तरवर्ती ग्रन्थकर्ताओंके असमालोचनके आधारसे विद्यानन्दका समय ई. सन् ७७५ से ई० सन् ८४० निर्धारित होता है । इस समयकी पुष्टि दूसरे अन्य प्रमाणोंसे भी होती है और जो इस प्रकार हैं : १. सुप्रसिद्ध तार्किक भट्टाकलङ्कदेवकी अष्टशतीपर विद्यानन्दने अष्टसहस्री टीका लिखी है। यद्यपि यह टीका आप्तमीमांसापर रची गई है तथापि विद्यानन्दने अष्टसहस्रीमें अकलङ्कदेवकी अष्टशतीको आत्मसात् १. तत्त्वार्थश्लो० पृष्ठ २०५, प्रमाणपरी० पृष्ठ ७५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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