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________________ प्रस्तावना ५५ भोजदेवके राज्यकालके अन्तिम वर्षों - अनुमानतः वि० सं० ११०० से ११०७, ई० १०४३ से १०५० - की रचना होनी चाहिए। और यह प्रकट है कि प्रभाचन्द्र इस समय तक राजा भोजदेवद्वारा अच्छा सम्मान और यश प्राप्त कर चुके थे और इसलिये उस समय ये लगभग ४० वर्ष के अवश्य होंगे। यदि शेष रचनाओंके लिए उन्हें ३० वर्ष उनका अस्तित्व वि० सं० १९३७ ( ई० सन् १०८० ) तक पाया जा सकता है । अतः प्रभाचन्द्रका समय वि० सं० १०६७ से १९३७ ( ई० सन् १०१० से १०८० ) अनुमानित होता है । भी लगे हों तो विभिन्न शिलालेखों में प्रभाचन्द्र के पद्मनन्दि सैद्धांत और चतुर्मुखदेव४ ये दो गुरु बतलाये गये हैं और प्रमेयकमलमार्त्तण्ड तथा न्यायकुमुदकी अन्तिम प्रशस्तियों में पद्मनन्दि सैद्धान्तका ही गुरुरूपसे उल्लेख है । हाँ, प्रमेयकमलमार्त्तण्डकी प्रशस्ति में परीक्षामुखसूत्रकार माणिक्यनन्दिका भी उन्होंने गुरुरूपसे उल्लेख किया है" । कोई आश्चर्य नहीं, नयनन्दिके द्वारा उल्लिखित और अपने विद्यागुरुरूपसे स्मृत माणिक्यनन्दि ही परीक्षामुखके कर्ता और प्रभाचन्द्र के न्यायविद्यागुरु हों । नयनन्दिने अपनेको उनका विद्या शिष्य और उन्हें महापण्डित घोषित किया है, जिससे प्रतीत होता है कि वे न्याय - शास्त्र आदिके महा विद्वान् होंगे और उनके कई शिष्य रहे होंगे । अतः सम्भव है प्रभाचन्द, माणिक्यनन्दिकी प्रख्याति सुनकर दक्षिणसे धारानगरी में, जो उस समय आजको काशीकी तरह समस्त विद्याओं और विद्वानोंकी केन्द्र बनी हुई थी और राजा भोजदेवका विद्या-प्रेम सर्वत्र प्रसिद्धि पा रहा था, उनसे न्याय - शास्त्र पढ़नेके लिये आये हों और पीछे वहाँके विद्याव्यासङ्गमय वातावरणसे प्रभावित होकर वहीं रहने लगे हों अथवा वहीं के वाशिदा हों तथा बाद में गुरु माणिक्यनन्दिके परीक्षामुखको टीका लिखनेके लिये प्रोत्साहित तथा प्रवृत्त हुए हों । जब हम अपनी इस सम्भावनाको लेकर आगे बढ़ते हैं तो उसके प्रायः सब आधार भी मिल जाते हैं । १. देखो, शि० नं० ५५ (६९) । २. इस समयको मानने से वि० सं० २०७३ में रचे गये अमितगतिके संस्कृत पंचसंग्रहके पद्यका तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरण में उल्लेख होना भी असङ्गत नहीं है । ३. शि० नं० ४० (६४) । ४. देखो, शि० नं० ५५ (६९) । ५. देखो, प्रशस्तिपद्य नं० ३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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