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________________ प्रस्तावना ५१ रत्नमालापर भी अजितसेनाचार्यकी न्यायमणिदीपिका', पण्डिताचार्य चारुकीर्ति नामके एक अथवा दो विद्वानोंको अर्थप्रकाशिका और प्रमेयरत्नमालालंकार ये तीन टीकाएँ उपलब्ध होती हैं और जो अभी अमुद्रित हैं । परीक्षामुखसूत्रके प्रथम सूत्रपर शान्तिवर्णीको भी एक प्रमेयकण्ठिका नामक अति लघु टीका पाई जाती है, यह भी अभी अप्रकाशित है। आ० माणिक्यनन्दिका समय यहाँ हमें आ० माणिक्यनन्दिके समय-सम्बन्धमें कुछ विशेष विचार करना इष्ट है। आ० माणिक्यनन्दि लघु अनन्तवीर्यके उल्लेखानुसार अकलंकदेव (७वीं शती ) के वाङ्मयके मन्थनकर्ता हैं। अतः ये उनके उत्तरवर्ती और परीक्षामुखटीका (प्रमेयकमलमार्तण्ड ) कार प्रभाचन्द्र ( ११वीं शतो ) के पूर्ववर्ती विद्वान् सुनिश्चित हैं। अब प्रश्न यह है कि इन तीन-सौ वर्षकी लम्बी अवधिका क्या कुछ संकोच हो सकता है ? इस प्रश्नपर विचार करते हुए न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमारजीने लिखा है कि 'इस लम्बी अवधिको संकूचित करनेका कोई निश्चित प्रमाण अभी दष्टिमें नहीं आया। अधिक सम्भव यही है कि ये विद्यानन्दके समकालीन हों और इसलिये इनका समय ई० ९वीं शताब्दी होना चाहिए।' लगभग यही विचार अन्य विद्वानोंका भी है। मेरी विचारणा १. अकलङ्क, विद्यानन्द और माणिक्यनन्दिके ग्रन्थोंका सूक्ष्म अध्यनन करनेसे प्रतीत होता है कि माणिक्यनन्दिने केवल अकलंकदेवके न्यायग्रन्थों का ही दोहन कर अपना परीक्षामुख नहीं बनाया, किन्तु विद्यानन्दके प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक आदि तर्कग्रन्थोंका भी दोहन करके उसकी रचना की है। नीचे हम दोनों आचार्योंके ग्रन्थोंके कुछ तुलनात्मक वाक्य उपस्थित करते हैं (क) आ. विद्यानन्द प्रमाणपरीक्षामें प्रमाणसे इष्टसंसिद्धि और प्रमाणभाससे इष्टसंसिद्धिका अभाव बतलाते हुए लिखते हैं: 'प्रमाणादिष्टसंसिद्धिरन्यथाऽतिप्रसङ्गतः ।'-पृ० ६३ । आ. माणिक्यनन्दि भी अपने परीक्षामुखमें यही कहते हैं:'प्रमाणादर्शसंसिद्धिस्तदाभासाद्विपर्ययः ।'-पृ० १। १, २, ३, ४, देखो, प्रश० सं० पृ० १, ६६, ६८, ७२ । . ५. देखो, प्रमेयक० मा० प्रस्ता० पृ० ५। ६. न्यायकुमु० प्र० भा० प्रस्ता० ( पृ० ११३ ) आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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