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________________ - कारिका १२२ - १९२३ ] $ ३२५ तदेवमाप्तपरीक्षेषा हिताहितपरीक्षादक्षैविचक्षणैः पुनः पुनश्चेतसि परिमलनीया, इत्याचक्ष्महेश्रन्यक्षेणाऽऽप्तपरीक्षा प्रतिपक्षं क्षपयितुं क्षमा साक्षात् । प्रेक्षावतामभीक्ष्णं विमोक्षलक्ष्मीक्षणाय संलक्ष्या ॥ १२२ ॥ श्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्राद्भुतस लिलनिधेरिद्धरत्नोद्भवस्य, प्रोत्थानाssरम्भकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत् । स्तोत्रं तोर्थोपमानं प्रथित- पृथू-पथं स्वामि-मीमांसितं तत्, विद्यानन्दः स्वशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिद्ध्यै ॥ १२३ ॥ उपसंहार [ उपसंहारः ] [ उपसंहार ] $ ३२५. इस प्रकार आप्तका स्वरूप निर्णय करनेके लिये रची गई यह 'आप्तपरीक्षा' हित और अहितके परीक्षण में कुशल विद्वानोंद्वारा बार-बार अपने चित्तमें लाने - अनुशीलन एवं चिन्तवन करनेयोग्य है, यह आगे कारिकाद्वारा कहते हैं 'यह 'आप्त-परीक्षा' प्रतिपक्षों ( आप्ताभासों ) का सम्पूर्णतया निराकरण करने के लिये साक्षात् समर्थ है । अतः इसे विद्वानोंको सदैव मोक्षलक्ष्मी दर्शन करानेवाली समझना चाहिए ।' ३५१ 'श्रीतत्त्वार्थशास्त्ररूपी अद्भुत समुद्रके, जो प्रकृष्ट अथवा महान् रत्नोंके उद्भवका स्थान है, रचनारम्भसमय में समस्त पापों अथवा विघ्नोंका नाश करनेके लिये शास्त्रकार श्रीगृद्धपिच्छाचार्य ( उमास्वाति ) ने जो 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' इत्यादि मंगलस्तोत्र रचा, जो तीर्थ के समान हैतीर्थ जैसा पूज्य एवं उपास्य है और महान् पथको प्रसिद्ध करनेवाला है अर्थात् गुणस्तवनकी उच्च एवं आदर्श परम्पराको प्रदर्शित करनेवाला है तथा जिसकी स्वामी (समन्तभद्राचार्य) ने मीमांसा की है --अर्थात् जिसको आधार बनाकर उन्होंने 'आप्तमीमांसा' नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा है उसीका 'विद्यानन्द' ने अपनी शक्त्यनुसार किसी तरह यथार्थ वाक्य और Jain Education International 1. मु स प 'विहिता हितपरीक्षादक्षैः' इति पाठः । 2. 'न्यक्षं कार्त्स्यनिकृष्टयोः ' - अमरकोष ३ - २२५ । न्यक्षं परशुरामे स्यान्न्यक्षः कात्स्र्न्यनिकृष्टयो:' इति विश्वः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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