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________________ ३५० आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका १२१ गुरुवचनानुसारितया तेषां प्रवर्तमानत्वात् देशतो मोहरहितत्वाच्च तेषां वन्दनीयत्वमिति प्रतिपद्यामहे । तत एव परापरगुरुगुणस्तोत्रं शास्त्रादौ 'मुनीन्द्रविहितम्, इति व्याख्यानमनुवर्तनीयम्, पञ्चानामपि परमेष्ठिनां गुरुत्वोपपत्तेः, कास्य॑तो देशतश्च क्षीणमोहत्वसिद्धरशेषतत्त्वार्थज्ञानप्रसिद्धेश्च यथार्थाभिधायित्त्वनिश्चयाद्वितथार्था भिधानशङ्कापायान्मोक्षमार्गप्रणीतौ गुरुत्वोपपत्तेः। तत्प्रसादादभ्युदयनिःश्रेयससम्प्राप्ते रवश्यम्भावात् । समाधान-इसका उत्तर यह है कि वे परमगुरु (आप्त) के वचनानुसार प्रवृत्त होते हैं और एक-देशसे मोहरहित हैं और इसलिये वे वन्दनीय हैं । यही कारण है कि शास्त्रके आदिमें मुनीश्वर पर और अपर गुरुके गुणोंका स्तवन करते हैं, इस प्रकारसे व्याख्यानकी अनुवृत्ति करनी चाहिए अर्थात् यह बात मूलस्तोत्रमें कण्ठोक्त न होनेपर भी ऊपरसे व्याख्यान कर लेनी चाहिए, क्योंकि पाँचों ही परमेष्ठियोंमें गुरुपना उपपन्न है। कारण, उनके सम्पूर्णतया और एक-देशसे मोहका नाश सिद्ध है तथा प्रत्यक्ष और आगमसे अशेषतत्त्वार्थका ज्ञान भा उनके प्रसिद्ध है। और इसलिये उनके यथार्थ कथन करनेका निश्चय होनेसे मिथ्या अर्थके कथन करनेकी शंका नहीं होती। अतएव वे मोक्षमार्गके प्रणयनमें गुरु सिद्ध हैं। उनके प्रसादसे अभ्युदय-स्वर्गादिविभूति और निःश्रेयस-मोक्षलक्ष्मीको अवश्य सम्प्राप्ति होती है। तात्पर्य यह कि अरहन्त भगवान्की तरह सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये चारों परमेष्ठी भी वन्दनीय हैं, क्योंकि उनमें सिद्धपरमेष्ठी तो पूर्णतः मोहको नाश कर चुके हैं और अरहन्तपदको प्राप्त करके पर-मोक्षको पा चुके हैं तथा आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीन परमेष्ठी अरहन्त परमात्मा द्वारा उपदेशित मार्गपर ही चलनेवाले हैं, एकदेशसे मोहरहित हैं और आगमसे समस्त तत्वार्थको जाननेवाले हैं, अतः ये चारों परमेष्ठी भी अभिवन्दनीय हैं। और वे भी मोक्षमार्गके कथंचित् प्रणेता सिद्ध होते हैं, क्योंकि उनके उपासकोंको उनके प्रसादसे स्वर्गादिकी अवश्य प्राप्ति होती है। 1. द 'योगीन्द्रः'। 2. द 'वितथाभिधा'। 3. द 'निश्रयसशक्त्यन्तरावश्यं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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