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________________ २९४ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटोका [कारिका ९६ शीतस्याग्निः। सम्यग्दर्शनादित्रयप्रकर्षेऽपकर्षश्च मिथ्यादर्शनादित्रयस्य, तस्मात्तत्तस्य' प्रतिपक्षः। $ २७१. कुतः पुनस्तत्प्रतिपक्षस्य सम्यग्दर्शनादित्रयस्य प्रकर्षपर्यन्तगमनम् ? प्रकृष्यमाणत्वात् । यत्प्रकृष्यमाणं तत्क्वचित्प्रकर्षपर्यन्तं गच्छति, यथा परिमाणमापरमाणोः प्रकृष्यमाणं नभसि । प्रकृष्यमाणं च सम्यग्दर्शनादित्रयम्, तस्मात्क्वचित्प्रकर्षपर्यन्तं गच्छति । यत्र यत्प्रकर्षपर्यन्त गमनं तत्र तत्प्रतिपक्षमिथ्यादर्शनादित्रयमत्यन्तं प्रक्षोयते । यत्र तत्प्रत्यक्षः तत्र तत्कार्यस्य मोहादिकर्मचतुष्टयस्यात्यन्तिकः4 क्षय इति तत्कार्याप्रशमादिकलङ्कचतुष्टयवैकल्यात्सिद्धं सकलकलङ्कविकलत्वमर्हप्रत्यक्षस्य मनोऽक्षनिरपेक्षत्वं साधयति । तच्चाक्रमत्त्वम्, तदपि सर्वद्रव्य देखी जाती है उसका वह प्रतिपक्ष है, जैसे ठण्डका प्रतिपक्ष अग्नि है। और सम्यग्दर्शनादि तीनके प्रकर्ष होनेपर मिथ्यादर्शनादि तोनकी हानि होती है, इस कारण सम्यग्दर्शनादि तीन मिथ्यादर्शनादि तीनके प्रतिपक्ष हैं। $२७१. शंका-मिथ्यादर्शनादिके प्रतिपक्ष सम्यग्दर्शनादि तीनके परमप्रकर्षकी प्राप्ति कैसे सिद्ध है ? समाधान-सम्यग्दर्शनादि तीन बढ़नेवाले हैं। जो बढ़नेवाला है वह कहीं प्रकर्षके अन्तको प्राप्त होता है, जैसे परिमाण परमाणसे लेकर बढ़ता हुआ आकाशमें चरम सीमाको प्राप्त है। और बढ़नेवाले सम्यग्दर्शनादि तीन हैं, इसलिये कहीं वे प्रकर्षके अन्तको प्राप्त होते हैं । जहाँ जो प्रकर्षके अन्तको प्राप्त होता है वहाँ उसके प्रतिपक्ष मिथ्यादर्शनादि तीन अत्यन्त नाश हो जाते हैं। जहाँ उनका नाश है वहाँ उनके कार्य मोहादि चार कर्मोका अत्यन्त क्षय है और जहाँ मोहादि चार कर्मोंका क्षय है वहाँ उनके कार्य मिथ्यात्वादि चार दोषोंका अभाव होनेसे समस्त दोषरहितपना सिद्ध होता हुआ अर्हन्तप्रत्यक्षके मन और इन्द्रियोंकी निरपेक्षताको सिद्ध करता है वह निरपेक्षता क्रमरहितताको सिद्ध करती 1. मु स 'तस्मात्तस्य' । 2 मु स 'पर्यन्त' इति पाठो नास्ति । 3. मु यत्प्रक्षयः'। 4. मु 'चतुष्टयान्तिकः'। 5. म तच्चाक्रमवत्वं'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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