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कारिका ९६ ] अर्हत्सर्वज्ञ-सिद्धि
२९१ निश्चयात्, न पुनस्तद्विलक्षणस्याहत्प्रत्यक्षस्य धर्मादिसूक्ष्माद्यर्थविषयत्वाभावः साधयितु शक्यः, तस्य तदगमकत्वादविनाभावनियमनिश्चयानुपपत्तेः । शब्दसाम्येऽप्यर्थभेदात् । कथमन्यथा 'विषाणिनी वाग गोशब्दवाच्यत्वात, पशुवत्' इत्यनुमानं गमकं न स्यात् ? यदि पुन:शब्दवाच्यस्वस्याविशेषेऽपि पशोरेव विषाणित्वं ततः सिद्ध्यति तत्रैव तत्साधने तस्य गमकत्त्वान्न पुनर्वागादौ तस्य तद्विलक्षणत्वादिति मतम्, तदा प्रत्यक्षशब्दवाच्यत्वाविशेषेऽपि नार्हत्प्रत्यक्षस्य सक्ष्माद्यर्थविषयत्वासिद्धिः, अर्थभेदात् । अक्षणोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा तमेव प्रतिगतं. प्रत्यक्षमिति हि भिन्नार्थमेवेन्द्रियप्रत्यक्षात, तस्याशेषार्थगोचरत्वान्मुख्य
गमक ( साधक ) सिद्ध होता है। कारण, उसकी उसके साथ अविनाभावरूप व्याप्ति निर्णीत है। किन्तु उससे सर्वथा भिन्न अर्हन्तप्रत्यक्षके धर्मादिक सूक्ष्मादि पदार्थों की विषयताका अभाव सिद्ध नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह उसका अगमक है-साधक नहीं है और साधक इसलिये नहीं है कि उसकी उसकी उसके साथ अविनाभावरूप व्याप्तिका निश्चय उपपन्न नहीं होता। दोनोंमें शब्दसाम्य होनेपर भी अर्थभेद है। अन्यथा 'वाणी सींगवाली है, क्योंकि 'गो' शब्दद्वारा कही जाती है, जैसे पशु' यह अनुमान क्यों गमक नहीं हो जायगा ? तात्पर्य यह कि यद्यपि इन्द्रियप्रत्यक्ष और अर्हन्तप्रत्यक्ष ये दोनों प्रत्यक्षशब्दद्वारा कहे जाते हैं तथापि दोनोंमें अर्थदष्टिसे आकाश-पाताल जैसा अन्तर है। यदि केवल प्रत्यक्षशब्दद्वारा कहे जानेसे वे एक हों और उक्त अनुमान गमक हो तो वाणी और पशु ये दोनों भी एक हो जायेंगे, क्योंकि दोनों गोशब्दद्वारा अभिहित होते हैं और इसलिये उक्त अनुमान भी गमक हो जायगा। यदि कहा जाय कि यद्यपि वाणी और पशु दोनों गोशब्दद्वारा अभिहित होते हैं तथापि पशुके ही उससे विषाण सिद्ध होता है, क्योंकि पशुमें ही विषाण सिद्ध करनेमें 'गो' शब्दद्वारा कहा जाना' हेतु गमक है, वाणी आदिमें नहीं। कारण, वह उससे भिन्न है, तो इन्द्रियप्रत्यक्ष और अर्हन्तप्रत्यक्षमें प्रत्यक्षशब्दद्वारा कहे जाने' की समानता रहनेपर भो अर्हन्तप्रत्यक्षके सूक्ष्मादि पदार्थोंकी विषयता असिद्ध नहीं है, क्योंकि अर्थभेद है। प्रकट है कि 'अक्षणोति व्याप्नोति जानातीति अक्ष आत्मा' अर्थात् जो व्याप्त करेजाने उसे अक्ष कहते हैं और अक्ष आत्माका नाम है अतः आत्माको हो लेकर जो ज्ञान हो उसे प्रत्यक्ष कहते हैं इस तरह अर्हन्तप्रत्यक्ष इन्द्रियप्रत्यक्षसे
___ 1. द 'प्रतिगन्त'।
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