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________________ २५८ भाप्तपरीक्षा-स्वोपशटीका [कारिका ८६ रनभ्युपगमे सदहेतुकत्वान्नित्यत्वसिद्धः कथं न चित्राद्वैतमेव ब्रह्माद्वैतमिति न संवेदनाद्वैतवच्चित्रातमपि सौगतस्य व्यवतिष्ठते। सर्वथा शून्यं तु तत्त्वमसंवेद्यमानं न व्यवतिष्ठते। संवेद्यमानं तु सर्वत्र सर्वदा सर्वथा परमब्रह्मणो नातिरिच्यते, तत्राक्षेपसमाधानानां परमब्रह्मसाधनानुकलत्वात् । ततो न सुगतस्तत्त्वतः संवृत्त्या वा विश्वतत्वज्ञः सम्भवति यतो निर्वाणमार्गस्य प्रतिपादकः स्यात् । [परमपुरुषस्यापि विश्वतत्त्वज्ञत्वं मोक्षमार्गोपदेशकत्वं च नोपपद्यत इति कथनम् ] ६२३५. परमपुरुष एव विश्वतत्वज्ञः श्रेयोमार्गस्य प्रणेता च व्यवतिष्ठताम्, तस्योत्कन्यायेन साधनादित्यपरः; सोऽपि न विचारसहः पुरुषोत्तमस्यापि यथाप्रतिपादनं विचार्यमाणस्यायोगात् । प्रतिभासमात्रं रूप दो चित्राबुद्धियोंको स्वीकार न किया जाय तो सत् और अहेतुक होनेसे वह नित्य सिद्ध होती है और ऐसी हालतमें चित्राद्वैत ही ब्रह्माद्वैत क्यों नहीं हो जाय ? अतएव संवेदनाद्वैतकी तरह चित्राद्वैत भी बौद्धोंका व्यवस्थित नहीं होता। सर्वथा शून्य तत्त्व तो अनुभवमें ही नहीं आता और इसलिये उसकी भी व्यवस्था नहीं होती। यदि अनुभवमें आता है तो वह सब जगह, सब काल और सब प्रकारसे परमब्रह्मसे भिन्न नहीं है। उसमें जो आक्षेप और समाधान किये जायेंगे वे परमब्रह्मकी सिद्धिके अनुकूल हैं उसके बाधक नहीं हैं । अतः सुगत वास्तवमें अथवा संवृत्तिसे सर्वज्ञ नहीं है और इस कारण वह मोक्षमार्गका प्रतिपादक सिद्ध नहीं होता। [परमपुरुष-परीक्षा] $ २३५. वेदान्ती-ठीक है, परमपुरुष (ब्रह्म) ही सर्वज्ञ और मोक्षमार्गका प्रतिपादक व्यवस्थित हो; क्योंकि वह उपयुक्त न्यायसे सिद्ध होता है। जैन-आपका भी यह कथन विचारपूर्ण नहीं है क्योंकि परमपुरुषका जैसा वर्णन किया जाता है वह विचार करनेपर बनता नहीं है। प्रकट है 1. मु स 'सर्वथा सर्वदा। 2. मु स प 'सम्भवतीति न' इति पाठः । 3. मु स 'च' नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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