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________________ कारिका ८६] सुगत-परीक्षा २४३ कथमभ्युपगमार्हाः ? स्वयमप्रतिभासमानस्यापि कस्यचिदभ्युपगमेऽतिप्रसङ्गानिवृत्तेः । प्रतिभासमानास्तु तेऽपि प्रतिभासमात्रान्तःप्रविष्टा एवेति कथं तैः प्रतिभासमात्रस्य विच्छेदः स्वरूपेण स्वस्य विच्छेदानुपपत्तेः। सन्नपि देशकालाकारैविच्छेदः प्रतिभासमात्रस्य प्रतिभासते न वा ? प्रतिभासते चेत्, प्रतिभासस्वरूपमेव तस्य च विच्छेद इति नामकरणे न किञ्चिदनिष्टम् । न प्रतिभासते चेत्, कथमस्ति ? न प्रतिभासते चास्ति वेति विप्रतिषेधात्।। २१६. ननु च देशकालस्वभावविप्रकृष्टाः कथञ्चिदप्रतिभासमाना अपि सन्तः सद्भिर्बाधकाभावादिष्यन्त एवेति चेत्, न; तेषामपि शब्दज्ञानेनानुमानज्ञानेन वा प्रतिभासमानत्वात् । तत्राप्यप्रतिभासमानानां सर्वथाऽस्तित्वव्यवस्थानुपपत्तेः। $ २१७. नन्वेवं शब्दविकल्पज्ञाने प्रतिभासमानाः परस्परविरुद्धार्थकिये जा सकते हैं ? यदि स्वयं अप्रतिभासमान भी किसी पदार्थको स्वीकार किया जाय तो अतिप्रसंग अनिवार्य है। और अगर वे प्रतिभासमान हैं तो वे भी प्रतिभाससामान्यके अन्तर्गत ही हैं। तब कैसे उनसे प्रतिभाससामान्यका विच्छेद है ? क्योंकि स्वरूपसे स्वका विच्छेद नहीं हो सकता है अर्थात् अपने स्वरूपसे अपनेका अभाव नहीं होता। और किसी प्रकार प्रतिभाससामान्यका देश, काल और आकारसे विच्छेद हो भी तो वह प्रतिभासित होता है या नहीं? यदि प्रतिभासित होता है तो प्रतिभासस्वरूप ही है, उसका 'विच्छेद' नाम धरने में कोई नुकसान नहीं है। यदि प्रतिभासित नहीं होता है तो कैसे है ? क्योंकि 'प्रतिभासित नहीं होता और है' दोनोंमें परस्पर विरोध है । $ २१६. योगाचार-देश, काल और स्वभावसे दूरवर्ती पदार्थ किसी तरह अप्रतिभासमान होते हुए भी आस्तिकों द्वारा सत् कहे हो जाते हैं, क्योंकि बाधक नहीं है । अतः आपका उपर्युक्त कथन ठीक नहीं है। __ वेदान्ती-नहीं, वे भी शब्दज्ञानसे अथवा अनुमानज्ञानसे प्रतिभासित होते हैं। यदि शब्दज्ञान अथवा अनुमानज्ञानमें भी वे प्रतिभासित न हों तो उनके अस्तित्व की व्यवस्था सर्वथा बन ही नहीं सकती है। अतः उपयुक्त दोष ज्यों-का-त्यों अवस्थित है। $ २१७. योगाचार-इस प्रकार फिर शब्द और विकल्पज्ञानमें प्रति 1. म स ‘स्वरूपेणास्वरूपेण' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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