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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ८४ कृतत्वात् । सुगतग्रहणात्सुगतमतानुसारिणां सर्वेषां गृहीतत्वात् । तहि स्याद्वादिनाऽनुत्पन्नकेवलज्ञानेन तत्त्वतो विश्वतत्त्वज्ञताऽपेतेन सूत्रकारादिना निर्वाणमार्गस्योपदेशकेनानैकान्तिकं साधनमिति चेत; न; तस्यापि सर्वज्ञप्रतिपादितनिर्वाणमार्गोपदेशित्वेन तदनुवादकत्वात्प्रतिपादकत्वसिद्धेः। साक्षात्तत्त्वतो विश्वतत्त्वज्ञ एव हि निर्वाणमार्गस्य प्रवक्ता । गणधरदेवा. दयस्तु सूत्रकारपर्यन्तास्तदनुवक्तार एव गुरुपर्वक्रमा'विच्छेदात्, इति स्याद्वादिनां दर्शनम्, ततो न तैरनैकान्तिको हेतुर्यतः सुगतस्य निर्वाणमार्ग. स्योपदेशित्वाभावं न साधयेत् ।
सौगतानां स्वपक्षसमर्थनम् ] $ १९९. स्यान्मतम्-न सुगतज्ञानं विश्वतत्त्वेभ्यः समुत्पन्नं तदाकारतां चापन्नं तदध्यवसायि च तत्साक्षात्कारि सौगतैरभिधीयते ।
जैन-नहीं, दिग्नागाचार्यादिकको भी पक्षान्तर्गत कर लिया है, क्योंकि सुगतके ग्रहणसे सुगतमतानुसारी सबोंका ग्रहण विवक्षित है।
बौद्ध-यदि ऐसा है तो जिन्हें केवलज्ञान प्राप्त नहीं है और इसलिये परमार्थतः जो सर्वज्ञतासे रहित हैं किन्तु मोक्षमार्गके प्रतिपादक हैं, ऐसे स्याद्वादी सूत्रकारादिकोंके साथ साधन व्यभिचारी है ? - जैन-नहीं, वे भी सर्वज्ञोक्त मोक्षमार्गके परम्परा उपपेशक होनेसे अनुवादक अथवा अनुप्रतिपादक हैं और इसलिये प्रतिपादक सिद्ध है। मोक्षमार्गका साक्षात् प्रवक्ता ( प्रधान प्रतिपादक ) निस्सन्देह परमार्थतः सर्वज्ञ ही है। गणधरदेवसे लेकर सूत्रकार तक तो सब उनके अनुवक्ता हैं, क्योंकि गुरुपरम्पराका क्रम अविच्छिन्न चलता रहता है, यह हमारा दर्शन है-सिद्धान्त है। अतः उनके साथ हेतु व्यभिचारी नहीं है जिससे वह सुगतके मोक्षमार्गोपदेशकताका अभाव सिद्ध न करे। अपितु सिद्ध करेगा ही।
१९९. बौद्ध-हमारा अभिप्राय यह है कि हम सुगतके ज्ञानको विश्वतत्त्वोंसे उत्पन्न, तदाकारताको प्राप्त और तदध्यवसायी होता हुआ उनका साक्षात्कारी नहीं कहते हैं। क्योंकि
1. स मु 'ग्रहणेन'। 2. द तदनुप्रतिपादकत्वात्' । 3. द क्रियावि'। 4. द 'मार्गोपदेशि। 5. द 'तदाकारतापन्न वा' ।
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