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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ८४ प्रतिपादकः, यथा कपिलादिः, तथा च सुगत इति। अत्र' नासिद्धं साधनम्, तत्त्वतो विश्वतत्त्वज्ञतापेतत्वस्य सुगते मिणि सद्भावात् । स हि विश्वतत्त्वान्यतीतानागतवर्तमानानि साक्षात्कुवंस्तद्धेतुकोऽभ्युप. गन्तव्यः, तेषां सुगतज्ञानहेतुत्वाभावे सुगतज्ञानविषयत्वविरोधात् । "नाकारणं विषयः" [ ] इति स्वयमभिधानात् । तथाऽतीतानां तत्कारणत्वेऽपि न वर्तमानानामर्थानां सुगतज्ञानकारणत्वम्, समसमयभाविना कार्यकारणभावाभावादन्वयव्यतिरेकानुविधाना. योगात्। न ह्यननुकृतान्वयव्यतिरेकोऽर्थः कस्यचित्कारणमिति युक्तं वक्तुम्, अनुकृतान्वयव्यतिरेकं कारणमिति प्रतीतेः। तथा भविष्यतां वार्थानां न सुगतज्ञानकारणता युक्ता यतस्तद्विषयं सुगतज्ञानं स्थादिति
प्रतिपादक नहीं है, जैसे कपिल वगैरह। और परमार्थतः सर्वज्ञतारहित सुगत है। यहाँ साधन असिद्ध नहीं है, कारण परमार्थतः सर्वज्ञताका अभाव सुगतरूप धर्मों में विद्यमान है। यदि वास्तवमें सुगत समस्त-भूत, भविष्यत् और वर्तमान तत्त्वोंका साक्षात् ज्ञाता हो तो उसके ज्ञानको समस्ततत्त्वकारणक अर्थात् समस्त तत्त्वोंसे जनित स्वीकार करना चाहिये, क्योंकि समस्त तत्त्व यदि सुगतज्ञानके कारण न हों तो वे सुगतज्ञानके विषय नहीं हो सकते हैं। कारण, बौद्धोंने स्वयं कहा है कि 'नाकारणं विषयः" [ ] अर्थात् 'जो कारण नहीं है वह विषय नहीं होता।' ऐसी हालतमें यदि किसी प्रकार अतीत पदार्थ सुगतज्ञानमें कारण हो भी जायें, यद्यपि उनमें अव्यवहित पूर्वक्षणके सिवाय अन्य सब अतीत पदार्थ कारण सम्भव नहीं हैं तथापि वर्तमान पदार्थोके सुगतज्ञानको कारणता असम्भव है, क्योंकि एक-काल में होनेवाले पदार्थों में कार्यकारणभाव न होनेसे उनमें अन्वय-व्यतिरेक नहीं बनता है। प्रकट है कि जिस पदार्थका अन्वय और व्यतिरेक नहीं है वह किसीका कारण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अन्वयव्यतिरेकवाला ही कारण प्रतीत होता है। तथा भविष्यत् पदार्थों के भी सुगतज्ञानको कारणता युक्त नहीं है जिससे सुगतज्ञान उनको विषय करनेवाला हो, क्योंकि कार्यसे पूर्ववर्तीको ही कारण कहा जाता है,
1. मु स 'इत्येवं'। 2 द प्रतौ पाठोऽयं नास्ति । 3. द प्रतौ त्रुटितोऽयं पाठः । 4. मु स 'नाननुकृता' । 5. मु स 'चा'।
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