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________________ कारिका ८३] कपिल-परीक्षा २१५ तथोपगमे चेतनः पुरुषो न वस्तुतः सिद्ध्येत्, चेतनशब्दज्ञानानुपातिनो विकल्पस्य वस्तुशून्यत्वात्, कतत्वभोक्तत्वादिशब्दज्ञानानुपाति विकल्पवत् । सकलशब्दविकल्पगोचरातिक्रान्तत्वाच्चतिशक्तेः पुरुषस्यावक्तव्यत्वमिति चेत्, न; तस्यावक्तव्यशब्देनाऽपि वचनविरोधात् । तथाऽप्यवचने कथं परप्रत्यायनयिति सम्प्रधार्यम् । कायप्रज्ञप्तेरपि शब्दाविषयत्वेन प्रवृत्त्ययोगात्। स्वयं च तथाविधं पुरुषं सकलवाग्गो. चरातीतमकिञ्चित्करं कुतः प्रतिपद्येत ? स्वसंवेदनादिति चेत्, न, तस्य ज्ञानशून्ये पुस्यसम्भवात्, स्वरूपस्य च स्वयं संचेतनायां पुरुषेण प्रतिज्ञा. यमानायां "बुद्धच-वसितमथं पुरुषश्चेतयते" [ ] इति व्याहन्यते, धर्म भी पुरुषके अवास्तविक हो जायेंगे। और वैसा माननेपर पुरुष वास्तविक चेतन सिद्ध नहीं होगा, कारण 'चेतन' शब्द और शाब्दज्ञानका जनक चेतनविषयक विकल्प भी वस्तुशून्य है-अवस्तु है । जैसे कर्तृता, भोक्तता आदि शब्द और शाब्दज्ञानके जनक विकल्प । सांख्य-चितिशक्ति समस्त शब्दों और विकल्पोंका विषय नहीं है और इसलिये पुरुष अवक्तव्य है-किसी भी शब्द अथवा विकल्प द्वारा कहने योग्य नहीं है ? ___जेन-नहीं, क्योंकि सर्वथा अवक्तव्य होने की हालत में वह अवक्तव्य शब्दके द्वारा भी नहीं कहा जा सकेगा। फिर भी उसे अवक्तव्य कहें तो दूसरोंको उसका ज्ञान कैसे होगा? यह आपको बतलाना चाहिये, क्योंकि दूसरोंको ज्ञान शब्द प्रयोगद्वारा ही होता है। यदि कहें कि कायप्रज्ञप्तिशरीरज्ञानसे दूसरोंको उसका ज्ञान हो जाता है, तो यह कथन भी आपका युक्त नहीं है, कारण कायप्रज्ञप्तिकी भी शब्दके अविषय पुरुष में प्रवृत्ति नहीं बन सकती है । तात्पर्य यह कि पुरुष जब किसी भी शब्दका विषय नहीं है तो उसमें शरीरज्ञानरूप कार्यानुमानकी प्रवृत्ति असम्भव है। अतः शब्दव्यवहारके बिना दूसरोंको पुरुषका ज्ञान अशक्य है। तथा स्वयंको भी उस प्रकारके पुरुषका कि वह समस्त शब्दोंका अविषय एवं अकिञ्चित्कर है, ज्ञान कैसे होगा ? अगर कहा जाय कि स्वसंवेदनसे उसका ज्ञान हो जाता है तो यह कथन भी संगत नहीं है क्योंकि वह (स्वसंवेदन) ज्ञानरहित पुरुषमें असम्भव है। और यदि स्वरूपकी पुरुषद्वारा स्वयं 1. मु स 'गमाच्चतयत इति' । 2. स 'षयत्वे प्रवृ' । द 'षये प्रव' । 3. म 'बुद्ध्यध्यवसित' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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