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________________ २१४ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ८३ निष्फल एव स्यात्, प्रधानेनैव संसारमोक्षतत्कारणपरिणामभृता पर्याप्तत्वात् । $ १९३, ननु च सिद्धेऽपि प्रधाने संसारादिपरिणामानां कर्तरि भोग्ये भोक्ता पुरुषः कल्पनीय एव, भोग्यस्य भोक्तारमन्तरेणानुपपत्तेरिति न मन्तव्यम; तस्यैव भोक्तुरात्मनः कर्तृत्वसिद्धेः प्रधानस्य कत्तु: परिकल्पनानर्थक्यात् । न हि कर्तृत्वभोक्त्तृत्वयोः कश्चिद्विरोधोऽस्ति, भोक्तुर्भुजि क्रियायामपि कर्तृत्वविरोधानुषङ्गात्। तथा च कर्तरि भोक्तृत्वानुपपत्ते भॊक्तेति न व्यपदिश्यते। ६ १९४. स्यान्मतम् -- भोक्तेति कर्तरि शब्दप्रयोगात्पुरुषस्य न वास्तवं कर्तृत्वम्, शब्दज्ञानानुपातिनः कर्तृत्वविकल्पस्य वस्तुशून्यत्वादिति; तदप्यसम्बद्धम्; भोक्तृत्वादिधर्माणामपि पुरुषस्यावास्तवत्वापत्तेः। जैन-तो आपके द्वारा कल्पना किया गया यह पुरुष व्यर्थ ही ठहरेगा, क्योंकि प्रधानसे ही, जो संसार, मोक्ष और उनके कारणभूत परिणामोंको धारण करनेवाला है, सब कुछ हो जाता है और इसलिये उसीको मानना पर्याप्त है। $ १९३ सांख्य-संसारादिपरिणामोंके कर्ता एवं भोग्य प्रधानके सिद्ध होजाने पर भी भोक्ता पुरुषकी कल्पना करना ही चाहिये, क्योंकि भोग्य भोक्ताके बिना नहीं बन सकता है। अतः पुरुषकी कल्पना व्यर्थ नहीं है ? जैन-यह मानना भी ठीक नहीं है, क्योंकि उसी भोक्ता पुरुषके कर्तापन सिद्ध है और इसलिये प्रधानको कर्ता कल्पित करना निरर्थक है। यह नहीं कि कपिन और भोक्तापनमें कोई विरोध है अन्यथा भोक्ताके भुजिक्रियासम्बन्धी कर्तृता भी नहीं बन सकती है और इस प्रकार कर्तामें भोक्तापन न बननेसे 'भोक्ता' यह व्यपदेश नहीं हो सकता है। $ १९४. सांख्य-हमारा आशय यह है कि 'भोक्ता' यह कर्ता अर्थमें शब्दप्रयोग होनेसे पुरुषके वास्तविक कर्तृता (कर्तापन) नहीं है, क्योंकि शब्द और शाब्द ज्ञानको उत्पन्न करनेवाला कर्तृताविषयक विकल्प वस्तुरहित है—अवस्तु है ? जैन-आपका यह आशय भी अयुक्त है, क्योंकि भोक्तापन आदि. 1. द स 'निःफल'। 2. मु 'परिणामतापर्या' । 3. स प्रतौ 'भोक्तृत्वानुपपत्तेः' इति पाठो नास्ति । 4. द प्रतौ 'स्यान्मतम्' नास्ति । 5. स मु 'शब्दयोगात्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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