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________________ कारिका ७९] ईश्वर-परीक्षा २०७ संस्कारविशेषतावचनात् । चरितार्थेन ज्ञानादिपरिणामशून्येन प्रधानेन संसर्गमात्रेऽपि तन्मुक्तात्मानं प्रति तस्य नष्टत्वात्संसार्यात्मानमेव प्रत्यनष्टत्ववचनान्न कपिलस्य चैतन्यस्वरूपस्य ज्ञानससर्गात्सर्वज्ञत्वाभावसाधने मुक्तात्मोदाहरणम्, तत्र ज्ञानसंसर्गस्यासम्भवादिति; तदप्यसारम्; प्रधानस्य सर्वगतस्यानंशस्य संसर्गविशेषप्रतिनियमानुपपत्तेः । कपिलेन सह तस्य संसर्गे सर्वात्मना संसर्गप्रसङ्गात्कस्यचिन्मुक्तिविरोधात् । मुक्तात्मनो वा प्रधानेनासंसर्गे कपिलस्यापि तेनासंसर्गप्रसक्तेः। अन्यथा विरुद्धधर्माध्यासात्प्रधानभेदापत्तेः । जाता है, क्योंकि असंप्रज्ञात योगके ही संस्कार शेष रहनेका उपदेश है। तात्पर्य यह कि ज्ञानसंसर्ग असम्प्रज्ञातयोगकालमें—निर्बीजसमाधिके समय में ही नष्ट हो जाता है वहाँ उसका केवल संस्कार अवशेष रहता है। लेकिन मुक्तजीवके तो न ज्ञानसंसर्ग है और न वह असम्प्रज्ञातयोगीय अवशिष्ट संस्कार । अतः चरितार्थ ( कृतकृत्य ) हुए ज्ञानादिपरिणामरहित प्रधानके साथ मुक्तात्माका सामान्य संसर्ग होनेपर भी [ विशेष संसर्ग न होनेसे ] वह मुक्तात्माके प्रति नष्ट माना जाता है, केवल संसारो आत्माके प्रति ही वह अनष्ट ( नाश नहीं हुआ ) कहा जाता है। अतएव चैतन्यस्वरूप कपिलके ज्ञानसंसर्गसे अभ्युपगत सर्वज्ञताका अभाव सिद्ध करने में मुतात्माका उदाहरण पेश करना उचित नहीं है, क्योंकि मुक्तात्मामें ज्ञानसंसर्ग असम्भव है और इसलिये उन्हें सर्वज्ञ स्वीकार नहीं किया है ? जैन-आपका यह मत भी सारहीन है, क्योंकि प्रधान जब व्यापक और निरंश है तो उसके संसर्गविशेषका प्रतिनियम ( अमुकके साथ है और अमुकके साथ नहीं है, ऐसा नियम ) नहीं बन सकता है, कपिलके साथ उसका संसर्ग होनेपर सबके साथ संसर्गका प्रसङ्ग आवेगा और इस तरह किसीके मुक्ति नहीं बन सकेगी। तथा मुक्तात्मा का प्रधानके साथ संसर्ग न होनेपर कपिलका भी प्रधानके साथ संसगं नहीं हो सकेगा, अन्यथा विरुद्ध धर्मोंका अभ्यास होनेसे प्रधानभेदका प्रसंग आवेगा । अर्थात उसे सांश मानना पड़ेगा। 1. मु स 'चेतनस्य स्वरूपस्य' । 2. मु स 'स्यानंतस्य। 3. मु विशेषानुपपत्तेः'। 4. मु 'प्रधानभेदोपपत्तेः' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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