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________________ कारिका ७७ ] ईश्वर-परीक्षा १९७ तेषां स्वरूपतोऽसत्त्वे सत्त्वे वा सत्तासम्बन्धानुपपत्तेः । स्वरूपेणासत्सु द्रव्यादिषु सत्तासम्बन्धेऽतिप्रसङ्गस्य बाधकस्य प्रतिपादनात् । स्वरूपतः सत्सु सत्तासम्बन्धेऽनवस्थानस्य' बाधकस्योपनिपातात्, सत्तासम्बन्धोऽपि संश्च पुनः सत्तासम्बन्धत्व परिकल्पनप्रसङ्गात् । तस्य वैयर्थ्यादकल्पने स्वरूपतः सत्स्वपि तत एव सत्तासम्बन्धपरिकल्पनं मा भूत् । स्वरूपत. सत्त्वादसाधारणात्सत्सदिति अनुवृत्तिप्रत्ययस्यानुपपत्तेर्द्रव्यादिषु तन्निबन्धनस्य साधारणसत्तासम्बन्धस्य परिकल्पनं न व्यर्थमिति चेत्, न, स्वरूपसत्त्वादेव सदृशात्सदसदिति प्रत्ययस्योपपत्तेः सदृशेतरपरिणामसामर्थ्यादेव द्रव्यादीनां साधारणासाधारणसत्त्वनिबन्धनस्य सत्प्रत्ययस्य घटनात् । सर्वथाऽर्थान्तरभूत सत्तासम्बन्धसामर्थ्यात्सदिति प्रत्ययस्य साधा क्योंकि उसमें भी बाधक मौजूद हैं । बतलाइये, स्वरूपसे असत् द्रव्यादिकोंके सत्ताका सम्बन्ध मानते हैं अथवा, स्वरूपसे सत् द्रव्यादिकोंके ? दोनों ही प्रकार से उनके सत्ताका सम्बन्ध नहीं बनता है । यदि स्वरूपसे असत् द्रव्यादिकों में सत्ताका सम्बन्ध स्वीकार किया जाय तो अतिप्रसङ्ग बाधक पहले कह आये हैं । अर्थात् अकाशकमलके भी सत्ताका सम्बन्ध प्रसक्त होगा, क्योंकि असत् की अपेक्षा दोनों समान हैं— कोई विशेषता नहीं है । और अगर स्वरूपसे सतों में सत्ताका सम्बन्ध हो तो अनवस्था बाधा आती है, क्योंकि सत्तासम्बन्ध भी सत् है और इसलिये पुनः सत्तासम्बन्धकी कल्पनाका प्रसंग आवेगा । अगर कहें कि सत्तासम्बन्ध में पुनः सत्तासम्बन्ध नहीं माना जाता, क्योंकि वह व्यर्थ है तो स्वरूप से सतों में भी सत्ताका सम्बन्ध मत मानिये, क्योंकि उनमें भी वह व्यर्थ है । यदि यह माना जाय किं स्वरूपसे सत्त्व असाधारण है, इसलिये उससे 'सत् सत्' इस प्रकारका अनुगत प्रत्यय नहीं बन सकता है | अतः द्रव्यादिकोंमें अनुगत प्रत्ययका कारणभूत साधारण सत्ताके सम्बन्धकी कल्पना व्यर्थ नहीं है, तो यह मान्यता भी ठीक नहीं है, क्योंकि सादृश्यात्मक स्वरूपसत्त्वसे ही 'सत् सत्' इस प्रकारका प्रत्यय बन जाता है । सदृश और विसदृश परिणामोंके सामर्थ्य से ही द्रव्यादिकों के साधारण और असाधारण सत्तानिमित्तक सत्प्रत्यय प्रतीत होता है, सर्वथा 1. स मु 'अनवस्था तस्य' । 2. मुस 'सत्तासम्बन्धेनापि सत्सु सत्वं पुनः सत्तासम्बन्धपरिकल्पन प्रसङ्गात् पाठः । 3. मुस 'सदिति' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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