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________________ प्राक्कथन विद्यानन्दका समय प्रस्तावना में विद्वान् सम्पादकने आचार्य विद्यानन्दके समय की विवेचना करके एक तरह से उसे निर्णीत ही कर दिया है । अतः उसके सम्बन्धमें कुछ कहना अनावश्यक है । स्याद्वादमहाविद्यालय, काशी कार्तिकी पूर्णिमा वी० नि० सं० २४७७ इतना प्रासङ्गिक कथन कर देनेके पश्चात् प्रस्तुत संस्करण के सम्बन्धमें भी दो शब्द कहना उचित होगा । आप्तपरीक्षा मूल तो हिन्दी अनुवादके साथ एक बार प्रकाशित हो चुकी है किन्तु उसकी टीका हिन्दी अनुवादके साथ प्रथम बार ही प्रकाशित हो रही है । अनुवादक और सम्पादक पण्डित दरबारीलालजी कोठिया, जैन समाजके सुपरिचित लेखक और विद्वान् हैं । आपका दर्शनशास्त्रका तुलनात्मक अध्ययन गम्भीर है, लेखनी परिमार्जित है और भाषा प्रौढ़ किन्तु शैली विशद है । दार्शनिक ग्रन्थोंका अनुवादकार्य कितना गुरुतर है इसे वही अनुभव कर सकते हैं जिन्हें उससे काम पड़ा है । फिर आप्तपरीक्षा तो दर्शनशास्त्रकी अनेक गहन चर्चाओंसे ओत-प्रोत है । अतः उसका अनुवादकार्य सरल कैसे हो सकता है तथापि अनुवादक अपनी उक्त विशेषताओंके कारण उसमें कहाँ तक सफल हो सके हैं, इसका अनुभव तो पाठक स्वयं ही कर सकेंगे। मैं तो अनुवादकको उनकी इस कृतिके लिये हृदयसे शुभाशीर्वाद देता हूँ । Jain Education International १५. कैलाशचन्द्र शास्त्री प्रधानाध्यापक ( स्याद्वाद महाविद्यालय, काशी ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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