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________________ १७० आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ७७ सर्वथाऽनाश्रितः स स न सम्बन्धः, यथा दिगादिः, सर्वथाऽनाश्रितश्च समवायः, तस्मान्न सम्बन्धः, इति इहेदंप्रत्ययलिङ्गो यः सम्बन्धः स समवायो न स्यात्, अयुतसिद्धानामाधार्याधारभूतानामपि सम्बन्धान्तरेणाऽsश्रितेन भवितव्यम्, संयोगादेरसम्भवात् । समवास्याऽप्यनाश्रितस्य सम्बन्धत्वविरोधात् । $ १५६. स्यादाकूतम्-समवायस्य धमिणोऽप्रतिपत्तौ हेतोराश्रयासिद्धत्वम् । प्रतिपत्तौ मिग्राहकप्रमाणबाधितः पक्षो हेतुश्च कालात्ययापदिष्टः प्रसज्यते । समवायो हि यतः प्रमाणात्प्रतिपन्नस्तत एवायुतसिद्ध सम्बन्धत्वं प्रतिपन्नम, अयुतसिद्धानामेव सम्बन्धस्य समवायव्यपदेशसिद्धेः, इति। क्योंकि वह सर्वथा अनाश्रित है। जो जो सर्वथा अनाश्रित होता है वह वह सम्बन्ध नहीं होता, जैसे दिशा आदिक । और सर्वथा अनाश्रित सम.. वाय है, इस कारण वह सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार जो सम्बन्ध 'इसमें यह' इस प्रत्ययसे अनुमानित किया जाता है वह समवाय नहीं है । कारण, जो अयतसिद्ध और आधार्याधारभत हैं उनका भी अन्य सम्बन्ध आश्रित होना चाहिये, संयोगादिक सम्बन्ध तो उनके सम्भव नहीं हैं। समवाय यद्यपि उनके सम्भव है लेकिन वह अनाश्रित है और इसलिये उसके सम्बन्धपना नहीं बन सकता है। मतलब यह कि समवायको अनाश्रित माननेपर वह सम्बन्ध नहीं हो सकता है, क्योंकि सम्बन्ध वह है जो अनेकोंके आश्रित रहता है। अतः सिद्ध है कि समवाय अनाश्रित होनेसे सम्बन्ध नहीं है और उस हालतमें अयुतसिद्धोंके 'इहेदं' प्रत्ययसे उसका साधन नहीं हो सकता है। $ १५६. वैशेषिक-हमारा अभिप्राय यह है कि आपने जो उपयुक्त अनुमानमें समवायको धर्मी ( पक्ष ) बनाया है वह प्रमाणसे प्रतिपन्न है अथवा नहीं? यदि नहीं, तो आपका हेतू ( सर्वथा अनाश्रिताना) आश्रयासिद्ध है। और यदि प्रमाणसे प्रतिपन्न है तो जिस प्रमाणसे धर्मीकी प्रतिपत्ति होगी उसी प्रमाणसे पक्षबाधित है और हेतु कालात्ययापदिष्टबाधितविषय हेत्वाभास है। निःसन्देह जिस प्रमाणसे समवाय प्रतिपन्न (ज्ञात) होता है उसी प्रमाणसे अयुतसिद्धोंका सम्बन्धत्व (सम्बन्धपना) 1. मु स प 'सम्बन्धो इति नास्ति' । 2. मु 'सज्येत' । 3. द 'सिद्धि'। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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