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________________ १३८ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ४२ रित्वात् । तदपोहेदमिति विज्ञानमबाधं भवत्येव । न च समवायहेतुकम्, तस्य संयोगहेतुकत्वात् । सम्बन्धमात्रे तु तन्निबन्धने साध्ये परेषां सिद्धसाधनमेव, स्याद्वादिनां सर्वत्रेहेदंप्रत्ययस्याबाधितस्य सम्बन्धमात्रनिबन्धनत्वेन सिद्धत्वात्। ६१३२. स्यान्मतम-वैशेषिकाणामबाधिते हेदंप्रत्ययाल्लिङ्गात्सामान्यतः सम्बन्धे सिद्धे विशेषेणावयवावयविनोर्गुणगुणिनोः क्रियाक्रियावतोः सामान्यतद्वतोविशेषतद्वतोश्च य सम्बन्ध इहेदंप्रत्ययलिङ्गः स समवाय एव भविष्यति लक्षणविशेषसम्भवात् । तथा हि-'अयुतसिद्धानामाधार्याधारभूतानामिहेदंप्रत्ययलिङ्गो यः सम्बन्धः स समवायः" [प्रशस्तपा० भा० सम०प्र०] इति प्रशस्तकरः । तत्रेहेदंप्रत्ययलिङ्गः समवाय इत्युच्यमानेऽन्तरालाभावनिबन्धनेन 'इह ग्रामे वृक्षः' इति इहेदंप्रत्ययेन व्यभिचारात्, सम्बन्ध इति वचनम्। सम्बन्धो हि इहेदंप्रत्यय है । क्योंकि वह भी 'इसमें यह है' इस प्रकारसे अबाधित है लेकिन वह समवायनिमित्तक नहीं है, संयोग-निमित्तक है। यदि सम्बन्धसामान्यके निमित्तसे उक्त प्रत्ययको सिद्ध करें तो उसमें जैनोंके लिए सिद्धसाधन है। कारण, जैनोंके यहाँ सब जगह अबाधित ‘इ हेदं' प्रत्ययको सम्बन्धसामान्यके निमित्तके माना गया है। $ १३२. वैशेषिक-हम अबाधित 'इहेदं' प्रत्ययरूप लिङ्गसे सामान्यतः सम्बन्धको सिद्ध करते हैं और उसके सिद्ध हो जानेपर विशेषरूपसे 'अवयव-अवयवि, गुण-गुणी, क्रिया-क्रियावान्, सामान्य-सामान्यवान् और विशेष-विशेषवान्में जो सम्बन्ध है और जो 'इहेदं' प्रत्ययसे जाना जाता है वह समवाय ही होना चाहिये, क्योंकि उसका विशेषलक्षण सम्भव है' इस प्रकार समवायसम्बन्धका साधन करते हैं। उसका खुलासा इस प्रकारसे है "जो अयुतसिद्ध हैं-अपृथग्भूत हैं और आधार्य-आधाररूप हैंआधाराधेयभावसे युक्त हैं उनमें जो सम्बन्ध होता है और जो 'इहेदं' प्रत्ययसे अवगत होता है वह समवाय सम्बन्ध है।" यह प्रशस्तकर अथवा प्रशस्तपादका उनके भाष्यमें प्रतिपादित समवायका लक्षण है । इस लक्षणमें यदि इतना ही कहा जाता कि जो 'इहेदं' प्रत्ययसे अवगत हो वह समवाय है' तो 'इस गाँवमें वृक्ष हैं' इस अन्तरालाभावको लेकर होनेवाले 'इहेदं' प्रत्ययके साथ उसकी अतिव्याप्ति होती है अतः 'सम्बन्ध' यह विशेषण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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