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________________ कारिका ४२] ईश्वर-परीक्षा १३५ समवायात् । नाकाशादेरिति निर्दिश्यते, तत्र तस्यासमवायात्, इति; तदप्ययुक्तम्; ताभ्यामीश्वर-ज्ञानाभ्यां भिन्नस्य सयवायस्यापि कुतः प्रतिपत्तिः ? इति पर्यनुयोगस्य तदवस्थत्वात् । 5 १३०. इहेदमिति प्रत्ययविशेषाद्बाधकरहितात् समवायस्य प्रतिपत्तिः । तथा हि --' इह महेश्वरे ज्ञानम्' इतीहेदंप्रत्ययो विशिष्टपदार्थहेतुकः, सकलबाधकरहितत्वे सतोहेदमिति प्रत्ययविशेषत्वात्, यो यः सकलबाधकरहितत्वे सति प्रत्ययविशेषः स स विशिष्ट पदार्थहेतुको दृष्टः, यथा 'द्रव्येषु द्रव्यं द्रव्यम्' इत्यन्वयप्रत्ययविशेषः सामान्यपदार्थहेतुकः, सकल बाधकरहितत्वे सति प्रत्ययविशेषश्चेहेदमिति प्रत्ययविशेषः, तस्माद्विशिष्टपदार्थहतुक इत्यनुमोयते। योऽसौ विशिष्टः पदार्थस्तद्धेतुः स समवायः, पदार्थान्तरस्य तद्धतोरसम्भवात्तद्धेतुकत्वायोगाच्च । न हि 'इह तन्तुषु पटः' इति प्रत्ययस्तन्तुहेतुकः, तन्तुषु तन्तवः इति प्रत्ययस्योश्वरमें उसका समवाय है, वह आकाशादिकका नहीं है, यह निर्देश भी हो जाता है, क्योंकि आकाशादिकमें महेश्वरज्ञानका समवाय नहीं है ? __ जैन-यह आशय भी आपका ठीक नहीं है, क्योंकि ईश्वर और ईश्वरज्ञानसे भिन्न समवायका भी ज्ञान कैसे हो सकता है, यह प्रश्न ज्योंका-त्यों अवस्थित है। १३०. वैशेषिक-'इसम यह है' इस प्रकारके बाधकर्रा त प्रत्ययसे समवायका ज्ञान होता है। वह इस प्रकारसे है---'महेश्वरमें ज्ञान है' यह 'इहेदं' प्रत्यय विशिष्टपदार्थके निमित्तसे होता है क्योंकि वह सम्पूर्ण बाधकरहित होकर इहेदंप्रत्ययविशेष है, जो-जो सम्पूर्ण बाधकरहित होकर प्रत्ययविशेष है वह-वह विशिष्ट पदार्थके निमित्तसे होता है, जैसे द्रव्यों में 'द्रव्य है द्रव्य है' यह अन्वयप्रत्ययविशेष सामान्यपदार्थ ( सत्ताजातिरूप द्रव्यत्व ) के निमित्तसे होता है। और सम्पूर्णबाधकरहित होकर प्रत्ययविशेष इहेदंप्रत्ययविशेष है, इस कारण वह विशिष्टपदार्थके निमित्तसे होता है । इस तरह हम उसका अनुमानसे साधन करते हैं। जो विशिष्टपदार्थ उक्त प्रत्ययमें निमित्त है वह समवाय है, कारण, अन्य पदार्थ उसमें निमित्त सम्भव नहीं है और इसलिये वह अन्य पदार्थके निमित्तसे नहीं होता । प्रसिद्ध है कि 'इन तन्तुओंमें पट है' यह प्रत्यय तन्तुओंके निमित्त 1. मु स प 'इदमिहेश्वरे'। 2. मु स प प्रतिषु द्वितीयं 'द्रव्यम्' नास्ति । 3. मु स प प्रतिषु 'सकलपदार्थ' । 4. द 'तन्तुषु' नास्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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