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________________ २४ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका २६, २७ येनेच्छामन्तरेणापि तस्य कार्ये प्रवर्तनम् । जिनेन्द्रवद् घटेतेति नोदाहरणसम्भवः ॥२६॥ $९१. इत्युपसंहारश्लोको। [ वैशेषिकाभिमतमीश्वरस्य ज्ञानं नित्यत्वानित्यत्वाभ्यां दूषयन् प्रथम नित्यपक्षं दूषयति ] $ ९२. साम्प्रतमशरीरस्य सदाशिवस्य यैर्ज्ञानमभ्युपगतं ते एवं प्रष्टव्याः, किमीशस्य ज्ञानं नित्यमनित्यं च ? इति पक्षद्वयेऽपि दूषणमाह ज्ञानमीशस्य नित्यं चेदशरीरस्य न क्रमः । कार्याणामक्रमाद्धेतोः कार्यक्रमविरोधतः ॥२७॥ ६९३. ननु च ज्ञानस्य महेश्वरस्य नित्यत्वेऽपि नाक्रमत्वं निरन्वयक्षणिकस्यैवाक्रमत्वात् । कालान्तरदेशान्तरप्राप्तिविरोधात्कालापेक्षस्य देशापेशरीर नहीं है। और धर्मविशेष भी उसके नहीं है क्योंकि शरीरके अभावमें उसका विरोध है-सद्भाव नहीं बनता है। तात्पर्य यह कि धर्मविशेष एक प्रकारका तीर्थंकर नामका पुण्यकर्म है और वह शरीरके आश्रित हैशरीरके सद्भावमें ही उसका सद्भाव सम्भव है, अन्यथा नहीं। इस तरह ईश्वरके न शरीर सिद्ध है और न धर्मविशेष । तब 'इच्छाके बिना भी वह जिनेन्द्रकी तरह शरीरादिक कार्यों में प्रवृत्त हो सकता है' यह उदाहरण ( जैनाभिमत जिनेन्द्रका दृष्टान्त ) प्रदर्शित करना कदापि सम्भव नहीं है। ६९१. ये दोनों पद्य उपसंहाररूप हैं। ९२. अब अशरीरी सदाशिव-( ईश्वर ) के जिन्होंने ज्ञान स्वीकार किया है उनसे यह पूछते हुए कि ईश्वरका वह ज्ञान नित्य है अथवा अनित्य दोनों ही पक्षों में दूषण दिखाते हैं : अशरीरी ईश्वरका ज्ञान यदि नित्य है तो कार्यों में क्रम नहीं बन सकता क्योंकि अक्रम (नित्य) कारणसे कार्यों में क्रमका विरोध है। तात्पर्य यह कि ईश्वरके ज्ञानको यदि नित्य मानें तो कार्योंकी क्रमशः उत्पत्ति नहीं हो सकती क्योंकि नित्य कारण एक ही समयमें समग्र कार्योंको एक-साथ उत्पन्न कर सकता है। ६९३. शङ्का-यद्यपि ईश्वरका ज्ञान नित्य है फिर भी उसमें अक्रमपना-क्रम का अभाव नहीं है। जो सर्वथा निरन्वय क्षणिक ज्ञान है उसीमें क्रम नहीं बनता। क्योंकि निरन्वय क्षणिकमें एक कालसे दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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