SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कारिका १४, १५, १६] ईश्वर-परीक्षा [ जैनाभ्युपगतजिनेश्वरस्थोदाहरणप्रदर्शनमप्ययुक्तमिति कथनम् ] ८१. प्रतिवादिप्रसिद्धमपि निदर्शनमन्द्य निराकुर्वन्नाहसमीहामन्तरेणापि यथा वक्ति जिनेश्वरः । तथेश्वरोऽपि कार्याणि कुर्यादित्यप्यपेशलम् ॥ १४ ॥ सति धर्मविशेषे हि तीर्थकृत्त्वसमाह्वये । ब्रू याज्जिनेश्वरो मार्ग न ज्ञानादेव केवलात् ॥ १५ ॥ सिद्धस्यापास्तनिःशेषकर्मणो वागसम्भवात् । विना तीर्थकरत्वेन नाम्ना नार्थोपदेशना ।। १६ ॥ ८२. महेश्वरः समीहामन्तरेणापि प्रयत्नं च ज्ञानशक्त्यैव मोक्षमार्गप्रणयनं तन्वादिकायं च कुर्वीत महेश्वरत्वात, यथा प्रतिवादिप्रसिद्धो जिनेश्वरः प्रवचनोपदेशमिति प्रतिवादिप्रसिद्धमपि निदर्शनमतमानस्य नोपपद्यते, स्याद्वादिभिः प्रतिज्ञायमानस्य जिनेश्वरस्य ज्ञानशक्त्यैव प्रव .८१. आगे वैशेषिक जैनोंके प्रसिद्ध उदाहरणको प्रस्तुत करते हैं, आचार्य उसका भी निराकरण करते हुए कहते हैं :-- वैशेषिक-जिसप्रकार जिनेश्वर इच्छाके बिना भी भाषण करते हैं-उपदेश देते हैं उसीप्रकार ईश्वर भी इच्छाके बिना शरीरादिक कार्योंको करता है ? जैन-यह कहना भी युक्ति-संगत नहीं है, क्योंकि जिनेश्वर तीर्थकृत्वनामक धर्मविशेष ( तोर्थंकरपुण्यकर्मोदय ) के होनेपर ही निश्चयसे मोक्षमार्गका उपदेश करते हैं, वे एकमात्र ज्ञानसे ही उपदेश नहीं करते। यही कारण है कि समस्तकर्मरहित सिद्धों--मुक्त जीवोंके तीर्थंकरकर्मका भी अभाव हो जानेसे उनकी वचन-प्रवृत्ति न हो सकनेके कारण वे मोक्षमार्गके उपदेशक नहीं माने जाते । ८२. वैशेषिक--हम युक्तिसे सिद्ध करते हैं कि महेश्वर इच्छा और प्रयत्नके बिना भी केवल ज्ञानशक्तिसे ही मोक्षमार्गका उपदेश और शरीरादिक कार्य करता है, क्योंकि वह महेश्वर है, जैसे आप जैनोंद्वारा माना गया जिनेश्वर मोक्षमार्गोपदेश एवं तीर्थप्रवर्तन कार्य करता है। जैन-हमारे जिनेश्वरका उदाहरण आपके अनुमानमें लागू नहीं होता, क्योंकि जिनेश्वर केवल ज्ञानशक्तिसे ही मोक्षमार्गका उपदेश और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy