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शिटाका
आप्तपरोक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ९ सामग्री च तन्वादिकार्योत्पत्तौ तत्समवायिकारणमसमवायिकारणं निमित्तकारणं चेति । चेषु सत्सु कार्योत्पत्तिदर्शनादसत्सु चादर्शनादिति; सत्यमेतत्; केवलं यथा समवाय्यसमवाधिकारणानामनित्यानां धर्मादीनां च निमित्तकारणानामन्वयव्यतिरेको प्रसिद्धौ कार्यजन्मनि तथा नेश्वरस्य नित्यसर्वगतस्य तदिच्छाया वा नित्यैकस्वभावाया इति तदन्वयव्यतिरेकानुपलम्भः प्रसिद्ध एव । न हि सामग्र्येकदेशस्यान्वयव्यतिरेकसिद्धौ कार्यजन्मनि सर्वसामग्र्यास्तदन्वयव्यतिरेकसिद्धिरिति शक्यं वक्तुम्, प्रत्येक सामग्र्येकदेशानां कार्योत्पत्तावन्वयव्यतिरेकनिश्चयस्य प्रेक्षापूर्वकारिभिरन्वेषणात्। पटाद्युत्पत्तौ कुबिन्दादिसामग्येकदेशवत् । यथैव हि तन्तुतुरी-वेम-शलाकादीनामन्वयव्यतिरेकाम्यां पटस्योत्पत्तिदृष्टा तथा कुबि
चाहिये, अकेले ईश्वरका अन्वय और व्यतिरेक नहीं । और शरीरादिकार्यकी उत्पत्तिमें शरीरादिके समवायिकारण, असमवायिकारण और निमित्तकारण ये तीनों सामग्री हैं क्योंकि उनके होनेपर शरीरादिकार्योंकी उत्पत्ति देखी जाती है । और उनके न होनेपर नहीं देखी जाती है । अतः सामग्री (तीनों कारणों) का अन्वय-व्यतिरेक ही कार्य के साथ ढंढ़ना उचित है, अकेले ईश्वरका नहीं ?
समाधान--यह सत्य है, किन्तु जिस प्रकार अनित्य समवायिकारण और असमवायिकारण तथा धर्मादिक निमित्तकारणोंका अन्वय और व्यतिरेक कार्यकी उत्पत्तिमें प्रसिद्ध है उस प्रकार नित्य तथा व्यापक ईश्वरका और नित्य एवं एकस्वभाववाली ईश्वरेच्छाका अन्वय और व्यतिरेक प्रसिद्ध नहीं है और इसलिये उनका अन्वय-व्यतिरेकाभाव प्रसिद्ध हो है। यह नहीं कहा जा सकता कि कार्यकी उत्पत्तिमें सामग्रीके एक देशके साथ अन्वय-व्यतिरेक सिद्ध हो जानेपर समग्र सामग्रीका अन्वय और व्यतिरेक भी सिद्ध हो जाता है, क्योंकि सामग्रीके प्रत्येक अंश ( हिस्से ) का अन्वय और व्यतिरेक कार्यकी उत्पत्तिमें विद्वज्जन निश्चित करते हैं। तथा वस्त्रादिककी उत्पत्तिमें जुलाहा आदि सामग्रीके हर हिस्से ( कारण ) का अन्वय और व्यतिरेक निश्चय किया जाता है। अर्थात् जिस प्रकार सूत, तुरो, वेम, शलाका आदि-( कपड़े बुननेकी चीजों ) के अन्वय और व्यतिरेकद्वारा वस्त्रकी उत्पत्ति देखी जाती है उसी प्रकार जुलाहाके अन्वय ( जुलाहाके होनेपर वस्त्रकी उत्पत्ति ) और व्यतिरेक ( जुलाहाके न होनेपर वस्त्रकी अनुत्पत्ति ) द्वारा भी वस्त्रकी उत्पत्ति देखी जाती है। तथा
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