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________________ ५३ कारिका २] ईश्वर-परीक्षा रिज्ञाने तव्याघातवत् । न चेश्वरकार्यस्य तनुकरणभुवनादेः कदाचिद् व्याघातः सम्भवति, महेश्वरसमीहितकार्यस्य यथाकारकसङ्घातं विचित्रस्यादृष्टादेरव्याघातदर्शनात्।। ५७. यदप्यभ्यधायि-'तनुरकणभुवनादिकं नैकस्वभावेश्वरकारणकृतं विचित्रकार्यत्वात् । यद्विचित्रकायं तन्नैकस्वभावकारणकृतं दृष्टम्, यथा घटपटमुकुटशकटादि । विचित्रकार्य च प्रकृतम् । तस्मान्नैकस्वभावेश्वराख्यकारणकृतमिति; तदप्यसम्यक्; सिद्धसाध्यतापत्तेः। न होकस्वभावमीश्वराख्यं तन्वादेनिमित्तकारणमिष्यते तस्य ज्ञानशक्तीच्छाशक्तिक्रियाशक्तित्रयस्वभावत्वात्। तनुकरणभुवनायुपभोक्तृप्राणिगणादृष्टविशेषवैचित्र्यसहकारित्वाच्च विचित्रस्वभावोपपत्तेः। घटपटमुकुटादिकार्यस्यापि तन्निदर्शनस्य तदुत्पादनविज्ञानेच्छाक्रियाशक्तिविचित्रतदुपकरणसचिवेनैकेन पुरुषेण समुत्पादनसम्भवात्साध्यविकलतानुषंगात् । विभिन्न प्रकारके पुण्य-पापादिका अविरोध-सहकारित्व देखा जाता है। अर्थात् ईश्वरद्वारा रचे जानेवाले कार्यों में यथावश्यक सभी कारणोंका मद्भाव रहता है और उसमें विभिन्न प्राणियोंके अदष्ट ( भाग्य ) आदिका सहकार है, अतएव ईश्वरसृष्टि विरुद्ध उत्पन्न नहीं होती। इसलिये परिशेषानुमानसे यह सिद्ध हुआ कि उक्त शरीरादिका जो बुद्धिमान् निमित्तकारण है वह सर्वज्ञ और अशरीरी है-अल्पज्ञ और शरीरधारी नहीं। ५७. शङ्का-'शरीर, इन्द्रिय, जगत् आदिक एकस्वभाववाले ईश्वर-रूप कारणसे जन्य नहीं हैं क्योंकि विभिन्न कार्य हैं। जो विभिन्न कार्य होते हैं वे एकस्वभाववाले कारणसे जन्य नहीं होते, जैसे-घड़ा, कपड़ा, मुकुट, गाड़ी आदि। और विभिन्न कार्य शारीरादिक हैं । अतएव एकस्वभाववाले ईश्वररूप कारणसे जन्य नहीं हैं ? । ___समाधान-यह शंका भी ठीक नहीं है, क्योंकि इस प्रकारके मानने में हमें सिद्ध साधन है। निःसन्देह शरीरादिकका जो हमने ईश्वर नामका निमित्तकारण माना है वह एकस्वभाववाला नहीं है। उसको हमने ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और क्रियाशक्ति इन तीन स्वभावविशिष्ट स्वीकार किया है। दूसरे, शरीर, इन्द्रिय, जगत् आदिके भोगनेवाले प्राणियोंके जो नाना प्रकारके अदष्टविशेष हैं उनके निमित्त एवं सहकारित्वसे भी ईश्वरमें नाना स्वभावोंकी उत्पत्ति हो जाती है। घड़ा, कपड़ा, मुकुट आदि कार्योंका जो उदाहरण प्रदर्शित किया गया है वे भी अपने उत्पादक ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और क्रियाशक्तिरूप नाना सहकारी कारणोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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