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कारिका ९]
ईश्वर-परीक्षा सम्भवाभावात्। न चायं कालात्ययापदिष्टो हेतुः, पक्षस्य प्रत्यक्षादिप्रमाणेनाबाधितत्वात् । न हि तन्वादेर्बुद्धिमन्निमित्तत्वं प्रत्यक्षेण बाध्यते, तस्यातीन्द्रियतया तदविषयत्वात् । नाप्यनुमानेन, तस्य तद्विपरीतसाधनस्यासम्भवात् ।
$ ५२ ननु 'तनुभुवनकरणादयो न बुद्धिमन्निमित्तका दृष्टकर्तृकप्रासादादिविलक्षणत्वात्, आकाशादिवत्,' इत्यनुमानं पक्षस्य बाधकमिति चेत्; न; असिद्धत्वात्, सन्निवेशादिविशिष्टत्वेन दृष्ट कर्तृकप्रासादाद्यविलक्षणत्वात्तन्वादीनाम् । यदि पुनरगृहीतसमयस्य कृतबुद्ध्युत्पादकत्वाभावात्तन्वादीनां दृष्टकर्तृ कविलक्षणत्वमिष्यते तदा कृत्रिमाणामपि मुक्ताफलादीनामगृहीतसमयस्य कृतबुद्ध्युनुत्पादकत्वादबुद्धिमन्निमित्तक
सर्वथा अभाव है । तथा वह कालात्ययापदिष्ट भी नहीं है, क्योंकि पक्ष प्रत्यक्षादिक किसी भी प्रमाणसे बाधित नहीं है । प्रकट है कि शरीरादिकके बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्यपना प्रत्यक्षसे बाधित नहीं है, क्योंकि वह बुद्धिमान् निमित्तकारण ( ईश्वर ) अतीन्द्रिय-इन्द्रियगम्य न-होनेसे प्रत्यक्षका विषय नहीं है। अनुमानसे भी वह ( पक्ष ) बाधित नहीं है। कारण, विपरीत-(शरीरादिकको अबुद्धिमन्निमित्तक) सिद्ध करनेवाला अनुमान नहीं है।
५२. शङ्का-'शरीर, जगत् और इन्द्रादिक बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्य नहीं हैं, क्योंकि दृष्टकर्तृक मकानादिसे-जिन मकानादिके कर्ता देखे जाते हैं उनसे-भिन्न हैं, जैसे आकाशादिक ।' यह अनुमान पक्षका बाधक है अर्थात् इस अनुमानसे आपका उपर्युक्त पक्ष बाधित है और इसलिए 'कार्यत्व' हेतु कालात्ययापदिष्ट हेत्वाभास है ?
समाधान-नहीं; उक्त हेतु असिद्ध है क्योंकि शरीरादिक रचनाविशेषविशिष्ट होनेसे दृष्टकर्तृक मकानादिसे अभिन्न हैं-भिन्न नहीं हैं। यदि कहा जाय कि जिसने संकेत ग्रहण नहीं किया उसको कृतबुद्धि उत्पन्न न करने से शरीरादिक दृष्टकर्तृकों से भिन्न हैं तो बने हुए मोती भी उक्त प्रकारके व्यक्तिको कृतबुद्धि उत्पन्न न करनेसे अबुद्धिमन्निमित्तक-बिना बुद्धिमानिमित्तकारणके जन्य-हो जायेंगे। दूसरी बात यह है कि जिनके कर्ता देखे जायें उन्हें बुद्धिमानिमित्तकारणजन्य और जिनके कर्ता न देखे
1. मु 'प्रसादा' ।
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