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________________ ४३ कारिका ९] ईश्वर-परीक्षा शश्वदस्पृष्टत्वं साधनं सिद्धिमध्यास्ते । तदसिद्धौ च न कर्मभूभृद्भतृत्वाभावस्ततः सिद्ध्यति । येनेदमनुमान प्रस्तुतपक्षबाधकागमस्यानुग्राहकं सिद्ध्यत् तत्प्रामाण्यं साधयेत् । न चाप्रमाणभूतेनागमेन प्रकृतः पक्षो बाध्यते, हेतुश्च कालात्ययापदिष्टः स्यात् । [ ईश्वरस्य जगत्कर्तृत्वसाधने पूर्वपक्षः ] ६५१. नन्वीश्वरस्यानुपायसिद्धत्वमनादित्वात्साध्यते । तदनादित्वं च तनुकरणभुवनादौ निमित्तकारणत्वादीश्वरस्य । न चैतदसिद्धम्, तथा हि-तनुभवनकरणादिकं विवादापन्नं बुद्धिमन्निमित्तकम्, कार्यत्वात् । यत्कार्यं तद् बुद्धिमन्निमित्तकं दृष्टम, यथा वस्त्रादि। कार्यं चेदं प्रकृतम् । तस्मात्बुद्धिमन्निमित्तकम् । योऽसौ बुद्धिमांस्तद्धेतुः स ईश्वर इति प्रसिद्ध बलसे 'कर्मोसे सदा अस्पष्टपना' हेतु सिद्ध नहीं हो सकता है और जब वह असिद्ध है तो उससे कर्मपर्वतोंके भेदनकर्ताका अभाव सिद्ध नहीं होता, जिससे प्रकृत अनुमान प्रस्तुत पक्ष-बाधक आगमका अनुग्राहक-पोषक होता हुआ उसके प्रामाण्यको सिद्ध करे । और अप्रमाणभूत आगमके द्वारा प्रकृत पक्ष बाधित नहीं हो सकता है, जिससे कि हेतु कालात्ययापदिष्ट-बाधितविषय नामका हेत्वाभास होता। ५१. शङ्का-ईश्वर अनादि है इसलिये वह अनुपायसिद्ध है और अनादि इसलिये है कि वह शरीर, इन्द्रिय, जगत् आदिमें निमित्तकारण होता है । तथा उसका यह शरीरादिकमें निमित्तकारण होना असिद्ध नहीं है-प्रमाण-सिद्ध है । इसका खुलासा इस प्रकार है: 'शरीर, जगत् और इन्द्रिय आदिक विचारस्थ पदार्थ बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्य हैं क्योंकि कार्य हैं, जो कार्य होता है वह बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्य देखा गया है, जैसे वस्त्रादिक। और कार्य प्रकृत शरीरादिक हैं, इसलिये बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्य हैं। जो बुद्धिमान् उनका कारण है वह ईश्वर है।' तात्पर्य यह कि जिस प्रकार वस्त्रादिक कार्य जुलाहा आदि बुद्धिमान् निमित्तकारणोंसे पैदा होते हुए देखे जाते हैं और इसलिये उनका जुलाहा आदि बुद्धिमान् निमित्तकारण माना जाता है उसी प्रकार १. आगमस्य प्रामाण्यम् । 1. 'त्वसाधनं' । 2. मु स प 'द्ध्येत्'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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