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________________ कारिका ८] ईश्वर-परीक्षा मुभाभ्यां परमात्मनः सर्वज्ञत्त्वसाधनात् । नाप्यनैकान्तिकः, कात्य॑तो देशतो वा विपक्षे वृत्त्यभावात् । तत एव न विरुद्धः ।। $ ४७. नन्वयं कालात्ययापदिष्टस्तदागमबाधितपक्षनिर्देशानन्तरं प्रयुक्तत्वात् । “सदैव मुक्तः सदैवेश्वरः पूर्वस्याः कोटेमुक्तात्मनमिवाभावात्" [ योगद.भाष्य. १-२४ ] इत्यागमात्महेश्वरस्थ सर्वदा कर्मणामभावप्रसिद्धेस्तद्धतत्वस्य बाधप्रसिद्धेः । सतां हि कर्मणां कश्चिद्भत्ता स्यान्न पुनरसतामित्यपरः । ४८. सोऽपि न परीक्षादक्षमानसः; तथातद्वाधकागमस्याप्रमाणत्वात्तदनुग्राहकानुमानाभावात् । [ आप्तस्य पूर्वपक्षपुरस्सरं कर्मभूभृद्भतृत्वप्रसाधनम् ] $ ४९. ननु च नेश्वराख्यः सर्वज्ञः कर्मभूभृतां भेत्ता, सदा कर्ममलैरस्पृष्टत्वात् । यस्तु कर्मभूभृतां भेत्ता स न कर्ममलैः शश्वदस्पृष्टः यथेश्वकिसीके लिये भी असिद्ध नहीं है क्योंकि दोनोंके द्वारा परमात्माके सर्वज्ञता सिद्ध की गई है। तथा अनैकान्तिक भी नहीं है क्योंकि एक देश अथवा सम्पूर्ण देशसे विपक्षमें नहीं रहता है । अतएव न विरुद्ध है। ४७. शङ्का-प्रस्तुत हेतु कालात्ययापदिष्ट अर्थात् बाधितविषय नामका हेत्वाभास है। कारण, आगमसे बाधितपक्षनिर्देशके बाद उसका प्रयोग किया गया है। "सदा ही मक्त है, सदा ही ऐश्वर्यसे युक्त है क्योंकि जिस प्रकार मुक्तात्माओं के पूर्व-पहली बन्धकोटि रहती है उस प्रकार ईश्वरके नहीं है [ तथा जिस प्रकार प्रकृतिलयोंके उत्तर-आगामी बन्धकोटि सम्भव है उस प्रकार ईश्वरके उत्तर बन्धकोटि भी नहीं है ]" इस आगमस महेश्वरके सदा ही कर्मोंका अभाव सिद्ध है और इसलिये उससे ईश्वरमें कर्मपर्वतोंका भेदनकर्तापन बाधित है। निश्चय ही विद्यमान कर्मोका ही कोई भेदनकर्ता होता है, अविद्यमान कर्मोका नहीं ? ४८. समाधान नहीं, हेतुका बाधक उक्त आगम अप्रमाण है, क्योंकि उसका अनुग्राहक-प्रमाणताको ग्रहण करनेवाला-अनुमान नहीं है। $ ४९. शङ्का-'ईश्वर नामका सर्वज्ञ कर्मपर्वतोंका भेदनकर्ता नहीं है, क्योंकि सदा ही कर्ममलोंसे अस्पृष्ट ( रहित ) है। जो कर्मपर्वतोंका भेदन 1. द 'सदा'। 2. द 'सिद्धः' । 3. द 'इति परः' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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