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________________ कारिका २] परमेष्ठिगुणस्तोत्रप्रयोजन प्रमादहेतुकश्च योगकषायहेतुकोऽपि। अविरतिहेतुकश्च योगकषायप्रमादहेतुकः प्रतीयते। मिथ्यादर्शनहेतुकश्च योगकषायप्रमादाविरतिहेतुकः सिद्धः । इति मिथ्यादर्शनादिपञ्चविधप्रत्ययसामॉन्मिथ्याज्ञानस्य बन्धहेतोः प्रसिद्धः षट्प्रत्ययोऽपि बन्धोऽभिधीयते । न चायं भावबन्धो द्रव्यबन्धमन्तरेण भवति, मुक्तस्यापितत्प्रसंगादिति द्रव्यबन्धः सिद्धः । सोऽपि मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगहेतुक एव बन्धत्वात्, भावबन्धवदिति मिथ्यादर्शनादिबन्धहेतुः सिद्धः।। ७. तदभावः कुतः सिद्ध्येत् ? इति चेत्, तत्प्रतिपक्षभूतसम्यग्दर्शनादिसात्मीभावात् । सति हि सम्यग्दर्शने मिथ्यादर्शनं निवर्तते तद्विरुद्धत्वात् । यथोष्णस्पर्श सति शीतस्पर्श इति प्रतीतम् । तथैवाविरतिजो कषायहेतुक बन्ध है वह योगहेतुक भी है और जो प्रमादहेतुक है वह योग तथा कषायजन्य भो है । जो अविरतिहेतुक है वह योग, कषाय और प्रमादजनित है। तथा जो मिथ्यादर्शनहेतुक है वह योग, कषाय, प्रमाद और अविरतिहेतुक भी स्पष्टतः सिद्ध है। मिथ्यादर्शन आदि पाँच बन्धकारणोंके सामर्थ्यस मिथ्यादर्शनका सहभावी मिथ्याज्ञान भी बन्धका कारण सिद्ध हो जाता है और इसीलिए भावबन्धके छह भी कारण कहे जाते हैं। यह भावबन्ध द्रव्यबन्धके बिना होता नहीं, अन्यथा मुक्त जीवोंके भी भावबन्ध का प्रसंग आयेगा, इसलिए द्रव्यबन्ध भी सिद्ध हो जाता है और वह भी मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इनसे हो उत्पन्न होता है। क्योंकि बन्ध है, जैसे भावबन्ध । इस तरह द्रव्यबन्धके भी मिथ्यादर्शनादि कारण हैं। इस प्रकार आत्माके बन्ध और बन्धके कारण प्रसिद्ध हैं। ७. शङ्का-बन्ध और बन्धके कारण सिद्ध हो भी जायें परन्तु उनका अभाव कैसे सिद्ध हो सकता है ? समाधान-इसका उत्तर यह है कि जब बन्ध और बन्धकारणोंके प्रतिपक्षी सम्यग्दर्शनादिरूपसे आत्माका परिणमन होता है तो बन्ध और बन्धके कारणोंका अभाव हो जाता है। सम्यग्दर्शन होनेपर मिथ्यादर्शन नहीं रहता, क्योंकि वह उसका विरोधी-प्रतिपक्षी ( उसके सद्भावमें न रहनेवाला ) है जिस प्रकार उष्णस्पर्शके होनेपर ठण्डा स्पर्श नहीं होता। 1. द 'विधीयते' । 2. द 'सिद्धः' इति पाठो नास्ति । १. बन्धहेत्वभावः संवर इत्यर्थ: । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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