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________________ २५० निक्षिप्त-पाठ [कर्मणोऽपि] १५३ धात्वर्थलक्षणा क्रिया] [सर्वविन्नष्टमोहत्वाभावात्] [I] [सर्वविन्नष्टमोहश्चासौ नास्ति]२०३ ।। [सामान्यरूपस्य च] [ज्ञानं] २४९ [अस्माभिः] ३०८ ३४० ३४७ अकलंकग्र० अध्या० टी० लि० आप्तप० टी० प्रश० अष्टस० ई० स० का० जैनतर्कवा० जैन सि० भा० ज्ञान बि० प्रस्ता० xxx संकेत-सूची अकलंकग्रन्थत्रय (सिंधी ग्रन्थमाला, कलकत्ता) अध्यात्मतरंगिणी टीका लिखित ( कर्ता-गणधरकीर्ति) आप्तपरोक्षालंकृति टीका प्रशस्ति (प्रस्तुत ग्रन्थ ) अष्टसहस्री (निर्णयसागर, बम्बई) ईस्वी सन् xxx कारिका जैनतर्कवात्तिक जैन सिद्धान्तभास्कर (जैन सिद्धान्त-भवन आरा) ज्ञानबिन्दु प्रस्तावना (सिंघी ग्रन्थमाला, कलकत्ता) तत्त्वार्थवात्तिक ' (जैनसिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था, कलकत्ता) तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक (निर्णयसागर, बम्बई ) तत्त्वार्थसूत्र (प्रथमगुच्छक, काशी) द्वितीय न्यायकुमुदचन्द्र (माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, बम्बई ) न्यायदीपिका (वीरसेवामन्दिर, सरसावा ) न्यायविनिश्चयविवरण (लिखित प्रति, वीरसेवामन्दिर ) न्यायावतार ( श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेन्स, बम्बई) तत्त्वार्थवा० तत्त्वार्थश्लो० तत्त्वार्थसू० द्वि० न्यायकुमु० न्यायदी० न्यायवि० वि० न्यायाव० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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