SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२३ ४२६ ४५६ ४२८ ४५७ ४२९ विषय पृष्ठ विषय पृष्ठ प्रकृतमें अल्पबहुत्वका निर्देश ४२१ क्रोधकी तीसरी संग्रह कृष्टिके वेदनकालमें द्वितीयादि समयोंमें उक्त विषयका विशेष होनेवाले कार्य विशेष ०५२ __ स्पष्टीकरण आदि उक्त विधिसे मानकी तीनों संग्रह कृष्टियोके प्रत्येक समयमें इन कृष्टियोंका बन्ध और वेदन कालके समय जो कार्य होते हैं उदय कैसे होता है इसका निर्देश ४२५ उनका क्रमसे निर्देश ४५२ संक्रमणद्रव्यके विभागका निर्देश मायाकी अपेक्षा उक्त विचार ४५४ कृष्टिवेदक इन कृष्टियोंको कैसे नष्ट करता लोभकी अपेक्षा है इसका निर्देश सूक्ष्म कृष्टियोंका अवस्थान कहाँपर है आयद्रव्यसे स्वस्थान गोपुच्छ नहीं बनता उसका निर्देश इसके कारणका निर्देश सूक्ष्म कृष्टियोंके करने की अपेक्षा अल्पबहत्व स्वस्थान-परस्थान गोपुच्छके होनेके कारणका का निर्देश ४५७ निर्देश ४३० सूक्ष्म कृष्टियोंका निर्माण कैसे होता है इसका मध्यमखण्ड करनेको विधिका निर्देश ४३१ निर्देश ४५८ संक्रमण द्रव्यका अधस्तन और अन्तर प्रकृतमें पुनः अल्पबहुत्वका निर्देश ४६७ कृष्टियों में किस विधिसे वटवारा होता है सूक्ष्मसाम्परायकी जिस स्थानपर प्राप्ति इसका निर्देश होती है उसका निर्देश ४७० बन्धद्रव्यकी अपेक्षा विचार ४३२ वहाँ होनेवाले स्थिति बंध और स्थिति सत्व कृष्टियों के अन्तरालमें एक एक अपूर्व कृष्टि का विचार होती है इसका निर्देश ४७० प्रकृतमें जो कार्य होते हैं उनका निर्देश बन्धद्रव्यको कृष्टियोंमें जिस विधिसे देते हैं ४७१ उसका निर्देश प्रकृतमें गुणश्रेणि और अन्तरके आयामका विविध कृष्टियोंके बननेकी विधिका निर्देश ४३५ निर्देश ४७९ क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिका वेदक जीव सूक्ष्म उदीर्ण व अतुदीर्ण कृष्टियोंके अल्प बहुत्वका निर्देश उक्त कृष्टिके वेदन कालके अन्तिम समयमें अन्तिम स्थिति काण्डक द्वारा गुणश्रेणि जो कार्य होते हैं उनका निर्देश रचनाका विधान ४८० क्रोधकी दूसरी संग्रह कृष्टिके वेदक कालमें यहाँ दीयमान और दृश्यमान द्रव्य का निर्देश ४८१ होनेवाले कार्य विशेष ४४७ लोभके अन्तिम काण्डकके पतनके बाद विवक्षित कषायकी प्रथमादि संग्रह कृष्टियों के होनेवाले कार्योंका निर्देश ४८२ द्रव्यका किस विधिसे संक्रमण होता है अन्तिम समयमें पांच कर्मों के स्थितिबंध व इसका निर्देश ४४९ शेष कर्मोंके स्थितिसत्त्वका निर्देश ४८२ कृष्टियों के बन्धके विषयमे विशेष नियम ४५० क्षीणकषाय व वहाँ होनेवाले कार्योका उक्त विषयमें अल्पबहत्त्वका निर्देश । ४५० निर्देश ४८३ विवक्षित संग्रह कृष्टिके वेदन कालके यहाँ घाति व अघाति कर्मोंका स्थितिसत्त्व अन्तमें होनेवाले कार्यों का निर्देश ४५१ कितना है इसका निर्देश ४८४ ४३४ करता है इसका निर्देश ४४५ ४८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy