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४९९
( ६२ ) विषय
पृष्ठ विषय प्रकृतमें कृतकृत्य संज्ञा प्राप्त होनेका सकारण इस करण में होनेवाले गुणश्रेणि आदि कार्यों निर्देश
४८५ का निर्देश जो मानादिक तीन सहित श्रेणि चढता है उसके केवलिसमुद्घातमें होनेवाले कार्य विशेषोंका विषयमें विशेष निर्देश
निर्देश
४९७ उक्त जीवोंके स्त्रीवेद सहित श्रेणी चढने पर लोकपूरण समुद्घातमें योगकी एक वर्गणा होने वाले कार्योंका निर्देश
रहनेका निर्देश
४९८ नपुंसक वेद सहित चढ़े हुए उक्त जीवोंके
इसके बाद योगनिरोध करनेका निर्देश ४९९ विषयमें विशेष कथन
४८८ योगनिरोधकी विधिका निर्देश अन्तिम समयमें तीन घाति कर्मों का नाश
सूक्ष्मकाय योग करनेके कालमें जीवप्रदेशों होकर तदनन्तर यह जीव सयोगी जिन
के पूर्व स्पर्धकोंके अपूर्व स्पर्धक करने हो जाता है इसका निर्देश
४८९ की विधि का निर्देश
५०४ घातिचतुष्कके नाशसे अनन्त चतुष्टयको तदनन्तर अपूर्व स्पर्धकोंको सूक्ष्मकृष्टिरूप प्राप्तिका निर्देश
४९० परिणमाता है इस विधिके क्रमका निर्देश ५०५ अनन्त सूखकी प्राप्तिके कारणोंका निर्देश ४११ कृष्टिकरणके बाद दोनों प्रकारके स्पर्धकोंका क्षायिक सम्यक्त्व और चारित्रकी प्राप्तिके
नाश कर सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाती ध्यानका कारणोंका निर्देश
ध्याना होता है
तदनन्तर योग निरोधपूर्वक अयोगी जिनके इन्द्रिय खेद कारणोंका अभाव होनेसे केवली
समुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति ध्यानकी प्राप्ति _के इन्द्रियातीत सुख हैं इसका निर्देश
होकर वहाँ आयुकर्मकी स्थितिके समान सातासातजन्य सुख-दुख केवलीके क्यों
शेष कर्मोंकी स्थिति होती है आदिका नहीं होता इनके कारणका निर्देश
४९२ निर्देश
५१० केवलीके साताके एक समयवाला स्थिति
उपान्त्य समयमें ७२ और अन्तिम समयमें बन्ध होता है इसका निर्देश ४९२ १३ प्रकृतियोंका नाश कर वह सिद्ध केवलिसमुद्घात और उसमें होनेवाले कार्यों
पदका भोक्ता होता है का निर्देश
ईषत्प्राग्भार पृथ्वीके प्रमाणका निर्देश केवलीके प्रति समय दिव्यतम नोकर्मका
कहाँ कौन शुक्ल ध्यान होता है इसका निर्देश ५१२ बन्ध आदिका निर्देश
सिद्ध परमेष्ठीसे उत्कृष्ट रत्नत्रय और समाधि. समुद्घातगत अनाहारक अवस्थामें नोकर्मका
की प्राप्तिकी कामना
५१२ ग्रहण नहीं
४९३ ग्रन्थकर्ता द्वारा रचित प्रशस्ति केवली समुद्घात कब करते हैं इसका निर्देश ४९४ ।। पण्डितजी द्वारा मंगल कामना इसके पहले आवर्जितकरण करनेका निर्देश ४९४ अर्थसंदृष्टि अधिकार
५१५
साना
४९२
५११
५१३
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