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________________ पृष्ठ २८३ २८५ २९० विषय पृष्ठ विषय अवरोहकके मायाकी अपेक्षा कथन स्त्रीवेदके साथ चढ़े हुए जीवकी अपेक्षा कथन ३१४ मानकी २८४ नपुंसकवेदके , ३१४ क्रोधकी पुरुषवेदसे चढ़कर उतरे हए जीवकी अपेक्षा पुरुषवेदकी २८९ स्त्रीवेदकी अल्पबहुत्वका निर्देश ३१५ नपुसंकवेदकी २९२ ६ चारित्रमोहक्षपणा तदनन्तर प्रकृतमें होनेवाले कार्य विशेषोंका चारित्रमोहकी क्षपणा सम्बन्धी अधिकारोंका निर्देश २९४ निर्देश ३३२ क्रमकरणकी व्यच्छित्तिके बाद होनेवाले कार्य इसके परिणाम आदि कैसे होते हैं इसका विशेष २९७ स्पष्टीकरण अनिवृत्तिकरणके अन्त में निधत्तीकरण आदिकी अधःप्रवृत्तकरणमें गुणश्रेणि आदि चार कार्य व्युच्छित्तिका निर्देश नहीं होते इस बात का निर्देश ३३७ अपूर्वकरणके पुनः प्राप्त होने पर गणश्रेणि आदि प्रकृतमें किस प्रकृतिका कैसा अनुभाग बन्ध सम्बन्धी जो कार्य होते हैं उनका खलासा ३०२ होता है इस बातका निर्देश तदनन्तर स्वस्थान अप्रमत्त होकर उसके बाद कितनी स्थितिका बन्धापसरण होता है इस जो कार्य विशेष होते हैं उनका निर्देश ३०४ बातका निर्देश ३३७ अधःप्रवृत्तकरण में होनेवाले कार्य विशेषों का प्रथमकरणके आदिमें होनेवाले स्थितिबन्धसे निर्देश ३०५ अन्तमें कितनी स्थिति बँधती है इस इसके बाद उसी सम्यक्त्वके कालके भीतर बातका निर्देश संयतासंयत और असंयत भी हो जाता है ३०६ अपूर्वकरणमें होनेवाले कार्यविशेष ३३८ उक्त जीवके सासादन होकर मरने पर वह प्रकृतमें गुणश्रेणिके विषयमें निर्देश नियमसे देव होता है इसका सकारण कथन ३०६ ।। प्रकृतमें गुणसंक्रमके विषयमें निर्देश ३३९ प्रकृतमें भतबलि आचार्य के अभिप्रायका निर्देश ३०७ अपकर्षण-उत्कर्षणके विषयमें विशेष विचार ३३९ अभी तककी प्ररूपणा पुरुषवेदके साथ क्रोधकषाय इस करणके प्रारम्भ और अन्त में स्थितिकाण्ड वाले की अपेक्षा की है इसका निर्देश ३०७ आदिके प्रमाणका निर्देश चारों कषायोंमेंसे प्रत्येक कषायके उदयसे चढ़े इस करणके प्रारम्भमें कितना स्थितिबन्ध और हए जीवके प्रथम स्थिति कितनी होती है स्थितिसत्त्व होता है इस बातका निर्देश ३४२ इस बातका निर्देश ३०८ एक स्थिति काण्डकके पतन के समय संख्यात इसी विषयका और विशेष खुलासा हजार अनुभागकाण्डकोंका पतन होता है उक्त जीवके इन कषायोंमेंसे किसका कब इस बातका निर्देश ३४३ ___ उपशम होता है इस बात का निर्देश इस करणमें किस क्रमसे किन प्रकृतियों की बन्ध ३११ उक्त जीव कब कितनी गुणश्रेणि करता है इस व्युच्छित्ति होती है इस बातका निर्देश ३४३ तीसरे करणके प्रथम समयमें स्थितिकोण्डक बातका निर्देश ३१२ उक्त जीवके अन्तर सम्बन्धी कथन करनेके साथ आदि सब नये होते हैं इस बातका निर्देश ३४४ इस करणके प्रथम समयमें विसदश और बादमें यह पूरा कथन पुरुष वेदकी अपेक्षा किया है । सदृश स्थितिकाण्डक होते हैं इस बातका इस बातका निर्देश ३४४ ३३८ ३३८ ३४१ ' ३०८ ३१३ निर्देश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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