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विषय
कृतकृत्यवेदक के कालका निर्देश
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कृतकृत्यवेदक यदि मरता है तो कब कहाँ जन्म लेता
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प्रकृत में कब कौन लेश्या होती है इसका निर्देश १२५ प्रकृत में कार्यविशेषका निर्देश
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प्रकृत में उपयोगी अल्पबहुत्वका निर्देश
क्षायिक सम्यक्त्वका माहात्म्य
जघन्य और उत्कृष्ट क्षायिक लब्धि कहाँ होती
है इसका खुलासा
३ देशसंयमलब्धि चारित्रसंयम लब्धि के दो भेदोंका
और वे कहाँ होती हैं इसका निर्देश मिथ्यादृष्टि के प्रथमोपशम सम्यक्त्व के साथ देश संयमको प्राप्त करने की विधि मिथ्यादृष्टिके वेदक सम्यक्त्व के साथ देशसंयम
को प्राप्त करनेकी विधि
देशसंयत गुणश्रेणिके संबंध में विशेष निर्देश
प्रकृतमें अल्पबहुत्वका निर्देश
देशसंयत के प्रतिपातगत आदि तीन स्थानोंका निर्देश
मनुष्यों और तियंचों में जघन्य आदि स्थानोंके क्रमका निर्देश
४ सकलसंयमलब्धि
सकल संयमके तीन भेदोंका निर्देश मिथ्यादृष्टि, अविरत सम्यग्दृष्टि और देश
संयत इनमें से कोई भी सकल संयमको प्राप्त कर सकते हैं
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सकलसंयमका देशसंयमके समान कथन करनेकी 'सूचना
प्रतिपातगत आदि तीन स्थानोंके विषय में विशेष कथन
प्रतिपद्यमान स्थान आर्य म्लेच्छोंके जघन्य - उत्कृष्ट किस प्रकार होते हैं
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देशसंयत के अवस्थित गुणश्रेणि होनेका नियम १४३ देशसंयत के दो भेद और उनके होनेवाले कार्यविशेष
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अनुभवरूप संयम स्थानोंका कथन
सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात संयमको लक्ष्यकर विशेष कथन
प्रतिपातगत आदि सभी संयमस्थानोंको
लक्ष्य कर विशेष विचार
५ चारित्रमोह उपशमना
वेद सम्यग्दृष्टि द्वितीयोपशम सम्यक्त्वको प्राप्त कर चारित्रमोहका अधिकारी होता है
क्षायिक सम्यग्दृष्टि भी उक्त चारित्रको प्राप्त करनेका अधिकारी है
प्रकृत में स्थितिसत्त्वका विचार वेद सम्यग्दृष्टि द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि कैसे होता है इसका निर्देश द्वितीयोपशम सम्यक्त्वके प्राप्त होनेके अन्तमुहूर्त बाद चारित्रमोहकी उपशमना प्रारंभ होनेका निर्देश
प्रकृतमें आठ अधिकारोंका निर्देश क्षायिक सम्यग्दृष्टिकी अपेक्षा स्थितिकाण्डक आदिके विषय में निर्देश प्रकृतमें गुणश्रेणिके काल आदिका निर्देश अपूर्वकरण के किस भाग में किन प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति होती है इसका निर्देश अनिवृत्तिकरण में क्रियमाण कार्योंका निर्देश उक्त करणके प्रथम समय में सत्त्व और बन्धके विषय में निर्देश
उक्त करणके बहुभाग जाने पर कब कितना स्थितिबन्ध होता है इसका निर्देश
प्रकृतमें बन्धा पसरण कब कितना होता है। इसका निर्देश
प्रकृत में स्थितिबन्ध के क्रमकरणका निर्देश इसके बाद क्रम परिवर्तनका निर्देश क्रमकरणके अन्त में उदीरणा विशेषका निर्देश बन्धकी अपेक्षा जो प्रकृतियाँ देशघाती हों जानी है उनका निर्देश
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