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________________ विषयसूची mmm . ८२ १५ विषय पृष्ठ विषय १ प्रथमोपशम सम्यक्त्व १-२ मिथ्यात्वके द्रव्यको तीन भागोंमें प्रथमोपशम सम्यक्त्वको विभक्त करनेकी विधि प्राप्त करनेका अधिकारी २ प्रकृतमें उपयोगी अल्पबहुत्व पाँच लब्धियोंके नाम और उनका स्वरूप उक्त सम्यग्दृष्टि सासादनगुणस्थानको कैसे कर्मबन्ध और सत्त्वके समय उक्त कब प्राप्त करता है सम्यक्त्व प्राप्त होता है उक्त सम्यक्त्वको प्राप्त करनेवाले जीवके ३४ बन्धापसरणोंका निर्देश उपयोग और लेश्यादि कौन-कौन होते हैं ८१ गतियोंमें कहाँ कितने बन्धापसरण होते हैं उक्त सम्यक्त्वसे च्युत हुए जीवके गतियों के आधारसे बन्ध योग्य प्रकृतियोंका दर्शनमोहनीयत्रिकमेंसे किसी एकका निर्देश १३ उदय नियमसे होता है प्रकृतमें स्थिति बन्ध आदिके दर्शनमोहके अन्तरके भरनेको विधिका निर्देश ८२ सम्बन्धमें विशेष विचार १४ सम्यक प्रकृतिके उदयमें होनेवाले चलादि दोष ८३ तीन दण्डकोंमें प्रकृतियोंका विचार मिश्रगुणस्थान और तत्सम्बन्धी विशेष विचार ८६ प्रकृतमें उदय योग्य प्रकृतियों आदिका विचार १६ मिथ्यादृष्टि और उसकी श्रद्धा प्रकृत सत्त्वके सम्बन्धमें विशेष विचार २० २क्षायिक सम्यक्त्व तीन करणोंका नाम निर्देश किसके पादमूलमें क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है ८८ उक्त तीन करण कितने काल तक क्षायिक सम्यक्त्वका निष्ठापन कहाँ होता है ८९ _होते हैं इसका निर्णय अनन्तानुबन्धीको विसंयोजनाका स्वरूप निर्देश ८९ तीनों करणोंका स्वरूप अनिवृत्तिकरणके कालमें किये जानेवाले अधःप्रवृत्तकरणके सम्बन्ध में विशेष विचार कार्य विशेष अपूर्वकरणके सम्बन्धमें विशेष विचार ३७ वहाँ स्थितिसत्त्वका विचार प्रकृतमें गुणश्रेणिके विषयमें विशेष विचार ३९ विसयोजना होनेके बाद विश्राम पूर्वक तीन अपकर्षणके विषयमें विशेष विचार ४१ करण करनेका विधान उत्कर्षणके विषयमें विशेष विचार ४५ अनिवृत्तिकरणमें किये जानेवाले कार्यविशेष ९६ गुणश्रेणिकी प्ररूपणा ५३ कितनी सत्त्व स्थितिके रहने पर दूरापकृष्टि गुणसंक्रमकी प्ररूपणा ५८ संज्ञक सत्त्व स्थिति होती है आदिका कथन ९७ स्थिति काण्डकघात आदिका विचार ५९ जहाँ असंख्यात समयप्रबद्धों की उदीरणा होने अनुभागकाण्डकघात लगती है वहाँ भागहार विशेषका निर्देश १०० अनिवृत्तिकरणका स्वरूप और उसमें मिथ्यात्व आदिके क्षपणा विषयक विशेष विचार १०० होनेवाले कार्य जब सम्यक्त्वका आठ वर्ष प्रमाण स्थिति अन्तरकरणसम्बन्धी विशेष विचार सत्त्व रहता है तब होनेवाले कार्यविशेष १०५ तदनन्तर होनेवाले विशेष कार्य ६८ आठ वर्षकी स्थितिके बाद होनेवाले कार्यविशेष १०९ अन्तर कालके प्रथम समयमें सम्यक्त्वके अन्तिम काण्डकके पतनके समय प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्ति होनेवाले कार्यविशेष १२० ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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