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________________ अर्थसंदृष्टि अधिकार ५४७ इहां नीचे एक दोय आदि व्यतीत भएं समयनिकी संदृष्टि विंदी लिखि ऊपरि बत्तीस वर्षमात्र स्थितिके निषेकनिकी क्रम हीन संदृष्टि करी। असैं अंतर्मुहूर्त काल गएं पीछे अंतर्मुहूर्त घाटि बत्तीस वर्षमात्र स्थितिबंध हो है। ताकी अंतविर्षे संदृष्टि करी है। बहुरि अन्य विधान होइ पुरुषवेदके उपशम कालविर्षे नवक समयप्रबद्ध एक घाटि दोय आवलीमात्र उपशमित नाही तिनकी संदृष्टि असो ०१२ उच्छिष्टावली ०१२३ ०१२३४ ०१२३४४ ० १२३४४४ ०१२३४४ ४ ४ उमशमना १२३४४४४ वली २३४४४४ ३४४४४ ४४४४ बंधावली ४४४ ४४ इहां समयप्रबद्धकी च्यारि उपशम फालि कल्पि च्यारिका अंककी संदृष्टि करी अर आवलोका प्रमाण च्यारि समय कल्पना कीएं तहां बंधावली विष प्रथमादि समयविर्षे एक एक समयप्रबद्ध बंध्या ते तिनिविर्षे क्रमतें एक दोय तीन च्यारि समयप्रबद्ध अनुपशमरूप भए। बहुरि ता पीछे उपशमनावलीका प्रथम समयविष जो बंधावलीका प्रथम समयविषै समयप्रबद्ध बंध्या था ताकी एक फालि उपशमाई तीन अवशेष रहीं । अर बंधावलीके द्वितीयादि समय विर्षे बंधे तीन समयप्रबद्ध अर उपशमनावलीका प्रथम समयविर्षे बंध्या एक समयप्रबद्ध संपूर्ण अनुपशमरूप रहे। बहरि उपशमनावलीका द्वितीय समयविणे बंधावलीका प्रथम समयविणे बंध्या समयकी दूसरी फालि अर द्वितीय समय बंध्याकी प्रथम फालि उपशमाई तातै तिनिकी दोय अर तीन फालि अनुपशमरूप रहीं अर बंधावलीका द्वितीय तृतीय समय विर्षे बंधे अर उपशमनावलीका प्रथम द्वितीय समयविर्षे बंधे संपूर्ण दोय समयप्रबद्ध अनुपशमरूप रहे । अंमैं ही क्रमतें उपशमनावलीका अंत समयविौं बधावलीका प्रथम समयविौं बंध्या समयप्रबद्ध सर्व उपशम्या ताकी संदष्टि विदि लिखि ताके द्वितीयादि समयनिविौं बंध समयप्रबद्धनिकी एक दोय तीन फालि अर उपशमनावलीके प्रथमादि समयनिविषं बधे च्यारि समयप्रबद्ध तें अनुपशमरूप रहे । ए नवीन समयप्रबद्ध हैं, तातै फालिनिकौं भी समयप्रबद्ध कल्पै एक घाटि दोय आवलोमात्र नवक समयप्रबद्ध अनुपशमरूप हैं। तिनिका उच्छिष्टावली मात्र सत्त्व रहैं पूर्वोक्त प्रकार एक एक फालिका उपशमन हो है । तहां प्रथम समयविर्षे बंधावलीके द्वितीय समर्यावर्षे बंध्या समयप्रबद्ध तौ सर्व उपशम्या, तृतीयादि समयनिविर्षे बंधेकी एक दोय फालि अनुपशमरूप रही उपशमना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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