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________________ लब्धिसार-क्षपणासार प्रथम फालि अर दोय आदि एक एक अधिकवार असंख्यातकरि भाजित गुण संक्रमका भाग दीएं द्वितीयादि फालि होइ तिनको संदृष्टि ऐसी स । । १२ - ४२ ७ । १० । ४८ । गु स | |१२ --- १२ ७। १० । ४८ । गु aa स I al१२ - ४२ ७।१०।४८। गु aaa बहुरि इहां अल्पबहुत्वविर्षे पुरुषवेदका पूर्वोक्त प्रकार सत्त्व द्रव्य ऐसा स २ । १२-२ ७।१० । ४८ ताकौं अपकर्षण भागहारका असंख्यातवां भाग अर दोयवार पल्यका असंख्यातवां भाग दीएं उदयावलीविषै दीया उदीरणा द्रव्य सो ऐसा स । । । १२ - २ । वहुरि तिसहोकौं अपकर्षण ७।१०। ४८ । उ।प।प aaa भागहारके असंख्यातवां भागका अर पल्यका असख्यातवां भागका भाग दीएं गुणश्रेणि द्रव्य ताकों पिच्यासोका भाग दीएं ताका प्रथम निषेकरूप उदय द्रव्य ऐसा-स | 2 । १२ - २ ७।१०। ४८ । उ।प। ८५ aa सो तातें असंख्यातगुणा हैं। बहुरि नपुंसक द्रव्यकौं गुणसंक्रमका भाग दोएं गुणसंक्रम द्रव्य ऐसास। १२ - ४२ । सो तातें असंख्यातगुणा है। बहरि ताका उपशम द्रव्य ऐसा स a १२ - ४२ ७। १० । ४८ | गु ७।१०। ४८ । गु a सो तातें असंख्यातगुणा है । इहां भागहारका भागहार राशिका गुणकार होइ । इस अपेक्षा गुणसंक्रमका भागहार तिस राशिका गुणकार जानना । बहुरि जहां संख्यातगुणित हजार वर्षप्रमाण स्थिति हो है तहां संदृष्टि ऐसी व १ ० ० ० शयाका संख्यात बहुभागमात्र स्थिति बंधापसरण ऐसा व १ ० ० ०१ । ४ । इहां संख्यातको सहनानो पांचका अक है। ऐसे ही यथासम्भव अन्य संदृष्टि जाननी । बहुरि पूर्व स्थिति बंधापसरण भएं बत्तीस वर्षमात्र स्थितिबंध प्रथमादि समयनिविर्षे हो हैं । तिनकी संदृष्टि ऐसी व३२ व ३२-/ ३२ LAT Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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