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________________ ५४८ लब्धिसार-क्षपणासार वलीका प्रथम समयविषै बंध्याकी एक फालि उपशमी, तातैं तीन फालि रहीं । ताहीके द्वितीयादि मनिवि बंधे संपूर्ण समयप्रबद्ध अनुपशमरूप रहे । जैसे ही क्रमतें एक घाटि दोय आवलीमात्र कालविषै तिन सर्व निके उपशमावै है । बहुरि इहां अपने अपने समयप्रबद्धकी फालि आदिकी रचना उपरि उपर अपनी अपनी सूधिविषै करी है । बहुरि पुरुषवेदके नवक समयबद्ध की संदृष्टि ऐसी १ स । ४ । २ । इहां समयप्रवद्धकौं सातका भाग दीएं मोहका बंध द्रव्य होइ, ताकौं कषाय नोकषाय ७ ।२ भाग अर्थ दोयका भाग दीएं इहां अन्य नोकषायनिका बंध नाही है तातें पुरुषवेदका बंध द्रव्य १ ऐसा स १२ । ताकौं दोय आवली एक सयय घाटि ऐसा ४ २ ताका गुणकार जानना । बहुरि ७।२ इहां जाकी बंधावली व्यतीत भई ऐसा पुरुषवेदका एक समयप्रवद्ध ऐसा स 3 ताकौं गुण ७।२ संक्रमणका भाग दीएं अपगत वेदका प्रथम समयविषै उपशमन द्रव्य हो है । बहुरि एक दोय आदिवार असंख्यात करि भाजित गुणसंक्रम ताहीको भाग दीएं द्वितीयादि समयनिविषै उपशम १० द्रव्य हो है । अंतविषै एक घाटि आवलोकी संदृष्टि ऐसी ४ सो इतनी वार असंख्यातकरि भाजित गुणसंक्रमणका भागहार जानना । ताकी संदृष्टि रचना ऐसी प्रथमफालि स a ७ । २ । गु Jain Education International द्वितीयफालि तृतीयकालि स | 2 ७ । २ । गु a स a ७ । २ । गु aa अंतफालि इहां क्रमहीन रूप निषेकनिकी संदृष्टिकरि ताके बीचि एक फालिविषै सर्व निषेकनिका केता इक द्रव्य उपशमाइए है, तातैं ऊभी लोककी संदृष्टि करी अर नीचें फालिनिका द्रव्यकी संदृष्टि लिखी । बहुरि पुरुषवेदके नवक समयप्रवद्धनिविषै एक एक समयप्रबद्ध ऐसा स याकौं अधः प्रवृत्त ७।२ स a ७ । २ । गु १० ४ ४ भागहारका भाग दीएं एक भागका अपगतवेदके प्रथम समयविषै क्रोधरूप संक्रमण हो है । अवशेष बहुभाग ताहीका भाग दीएं एक भागका द्वितीय समय विषै संक्रमण हो है । अवशेष बहुभागकौं का भाग दीएं एक भागका तृतीय समय विषै संक्रमण हो है । ऐसें समय घाटि दोय आवली पर्यंत अनुक्रम जानना । तिनकी संदृष्टि ऐसी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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