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________________ ( ४७ ) जैसे स्थितिसत्त्व अठतालीस समयमात्र था ताके अठतालीस ही निषेक थे अर तिनि सर्व निषेकनिकी पचीस हजार परमाणू थीं तिनिविर्षे आठ निषेकनिका नाश करना तहां तिनि निषेकनिके एक हजार परमाण तिनिके अवशेष रहेंगे जे चालीस निषेक तिनिविर्षे अन्तिम फालिकी अपेक्षा ऊपरिके दोय निषेक छोडि नीचेके अठतीस निषेकनिविषै मिलाइए है, तहां तिन निषेकनिवि केते इक परमाणू तौ पहिले समय मिलाइए, केते इक दूसरे समय मिलाइए, औसै च्यारि समय पर्यंत मिलाइए है । तहां चौथे समय अवशेष सर्व परमाणू निकौं तिनि अठतीस निषेकनिवि मिलाए तिनि आठ निषेकनिका अभाव हो है । तिनिके अभाव होते अठतालीस समयका स्थिति सत्त्व था सो चालीस समयहीका रहै है। जैसे ही यथासंभव प्रमाण जानि दाष्टीतविषै विधान जानना । अब इहां संज्ञा कहिए है असे ऊपरिके निषेकनिकौं क्रमतें निचले निषेकरूप परिणमाइ स्थितिका घटावना ताका नाम स्थितिकांडक है वा स्थितिखंड है। बहुरि इस एक कांडकविर्षे निषेकनिका नाश करि जेती स्थिति घटाई ताके प्रमाणका नाम स्थितिकांडक आयाम है। जैसे दष्टांतविआठ समय । बहरि तिनिका नाश करने योग्य निषेकनिका जो सर्व द्रव्य ताका नाम कांडकद्रव्य है। जैसे दृष्टांतवि एक हजार । बहुरि इस द्रव्यकौं अवशेष स्थितिके निषेकनिविष मिलावना तहां आवलीमात्र निषेकनिविर्षे न मिलाया ताका नाम अतिस्थापनावली है । जैसैं दृष्टांतविर्षे दोय निषेक । बहरि या विना अन्य अवशेष स्थितिके निषेकनिविर्षे तिस कांडक द्रव्यकौं मिलावना ताका नाम कांडकोत्करण है वा कांडकघात है। बहरि एक कांडकका अपकर्षण अंतमुहूर्त काल करि पूर्ण होइ ताका नाम कांडोत्करणकाल है। जैसे दृष्टांतविष च्यारि समय । बहुरि इस कालके प्रथम समयवि. तिस कांडक द्रव्यकौं अहि जेते परमाणु अवशेष निषेकनिविष मिलाए ताका नाम प्रथम फालि है। द्वितीय समयविष मिलाए ताका नाम द्वितीय फालि है। अंसें ही क्रमत अंत समय विर्षे मिलाए ताका नाम चरम फालि है । अन्त समयतै पहिले समय विषै मिलाए ताका नाम द्विचरम फालि है । औसैं एक कांडक समाप्त भएं द्वितीय कांडक प्रारम्भ हो है। असे ही अनेक कांडक भएं स्तोक स्थितिसत्व अवशेष रहि जाइ तब कांडक क्रिया न हो है। एक एक समय व्यतीत होते एक एक समय क्रमतें घाटि तिस अवशेष स्थितिका नाश हो है । औसै कांडक विधान कह्या । अब अपकृष्टि विधान कहिए है-- विवक्षित कर्म प्रकृतिके सर्व निषेकसम्बन्धी सर्व परमाणु तिनकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं एकभागमात्र परमाणू ग्रहेताका नाम अपकृष्ट द्रव्य है । तिस अपकृष्ट द्रव्यवि केते इक परमाणू तो उदयावलीवि मिलाए, केते इक परमाणू गुणश्रेणि आयामविर्षे मिलाए, अवशेष परमारण उपरितन स्थितिविर्ष मिलाए । वहां वर्तमान समयतें लगाय आवलीमात्र समयसंबंधी जे निषेक तिनका नाम उदयावली है । तिन विष उदयावली विष देने योग्य जो द्रव्य ताकौं निषेक निषेक प्रति एक एक चय घटता क्रम करि मिलाईए । बहुरि तिनि आवलीमात्र निषेकनिके ऊपरिवर्ती यथासंभव अंतर्मुहर्तके समयसंबंधी जे निषेक तिनिका नाम गुणश्रेणी आयाम है । तिनिविषै गुणश्रेणी आयामविष देने योग्य जो द्रव्य ताकौं निषेक निषेक प्रति असंख्यातगुणा क्रम लोएं मिलाइए है । बहुरि तिनके उपरिवर्ती अवशेष सर्व स्थितिसंबंधी निषेक तिनका नाम उपरितन स्थिति है । तिनवि अन्तके आवलीमात्र निषेकनिवि तौ द्रव्य न मिलाइए है ताका नाम तो अतिस्थापनावली है । अर तिस विना अन्य निषेकनिविष उपरितन स्थितिविर्षे देने योग्य जो द्रव्य ताकौं नाना गुणहानि रचना करि निषेक प्रति चय घटता क्रम लीएं मिलाइए है । इहां दृष्टांत जैसैं विवक्षित कर्म प्रकृतिकी स्थिति अठतालीस समय ताके निषेक अडतालीस, तिनके सर्व परमाणू पचीस हजार, तिनिकौं अपकर्षण भागहारका प्रमाण पांच ताका भाग दीए पांच हजार पाए सो सर्व परमाणनिमैस्यौं इतनी परमाणू ग्रहिकरि तिनिविर्षे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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