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________________ अर्थसंदृष्टि अधिकार १ अधिक दोय आवली ४ । २ लिखनी बहुरि ग्रहया हुवा निषेक एक लिखना। बहुरि व्याघातविष अतिस्थापन निक्षेप ताकी रचनाविषै तहां निक्षेप, अतिस्थापन, ग्रहया हुवा निषेकका विभागके अथि वीचिमें लीककरि तहां निक्षेपका प्रमाण अंत कोटाकोटि । (अं को २) अतिस्थापनका प्रमाण कर्म स्थिति (क) मैं घटावना ( - ) एक समय अधिक अंत: कोटाकोटि अं को २ अर ग्रया हूवा अंत निषेक एक जैसे कीएं अपकर्षणविर्षे ऐसी संदृष्ट रचना हो है ५२ अति जअ १५२ क-अंको २ ज नि १५ शिअंको २ आ४ a इहां ग्रह्या हवा निषेकका द्रव्य ग्रहि निक्षेपरूप निषेकनिविर्षे दीजिए है। अस्तिस्थापनरूप निषेकनिविर्षे न दीजिए है ऐसा जानना। बहुरि उत्कर्षण कथनविर्ष पूर्व सत्तारूप निषेकका द्रव्य नवीन बंध्या समयप्रबद्धका निषेकनिविर्षे दीजिए है, तातें पूर्व सत्तारूप निषेकनिकी रचनाकरि ताके आगें द्रव्य नवीन बंध्या सो समयप्रबद्ध ताकी नीचें तौ आबाधाकी अर ऊपरि निषेकनिकी संदृष्टि लिखनी । तहां तौ पूर्व सत्ताका निषेकका ग्रहण कीया ताकै अर नवीन बंध्या समयप्रबद्धकै संबंध मिलावनेके अथि दोऊनिकौं अंतरालविर्षे लीककरि मिलाय देने । बहुरि नवीन समयप्रबद्धविषै अतिस्थापन निक्षेपका विभाग करनेके अर्थि वीचिमें लोक करनी। तहां पूर्व सत्ताका अन्त निषेकका उत्कर्षण होतें तहां जघन्य रचना हो है। ताका अतिस्थापनविर्षे आवलीका असंख्यातवां भागकी सहनानी ऐसो ४. निक्षेपविर्षे आवलीका असंख्यातवां भागकी सहनानी ऐसी २ बहुरि a पूर्व सत्ताका उदयावलीतैं ऊपरि जो निषेक ताका उत्कर्षण होतें उत्कृष्ट रचना हो है । ताका अतिस्थापनविर्षं एक समय अधिक आवलीकरि हीन आबाधा काल ऐसा आ-४ । उत्कृष्ट निक्षेपविषै एक समय अर आवलोकरि युक्त जो आबाधाकाल तीहिंकरि हीन कर्म स्थितिमात्र काल ऐसा क-४, ताके ऊपरि एक समय अधिक आवलोमात्र अंत निषेकनिविधैं न दिीजए है ते ऐसे ४ जानने । बहुरि ऐसा जानना जो जघन्यविर्षे तौ पूर्वसत्ताका निषेक ग्रह्या सो जिस समय उदय होगा तिस समय आवने योग्य जो नवोन समयप्रबद्ध ताके ऊपरि अतिस्थापनके निषेक अर तिनके ऊपरि निक्षेपरूप निषेक जानने । बहुरि उत्कृष्टविर्ष पूर्व सत्ताका ग्रह्या निषेक वर्तमान समयतै आवली काल पीछे उदय आवने योग्य है । अर एक समय उस निषेकके उदय आवनेका है । अर नवीन समयप्रबद्धकी १ १ १ - आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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