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________________ ५१८ क्षपणासार आबाधाका काल वर्तमान समयतें लगाय है सो तातै एक आवली एक समय घटाएं अतिस्थापन हो है। अर नवीन समयप्रबद्धके प्रथमादि निषेक निक्षेपरूप हो हैं। अन्त विर्षे न दीजिए है। ऐसें उत्कर्षणविर्ष ऐसी संदृष्टि रचना हो हे जनि जसति४ ग्राह्यनिषेक क- आ अति आ-४ आषाधा प्रह्या निषेक प्रथमा ४ वली बहुरि आचार्यनिके मतकी अपेक्षा विशेष कह्या है तिनकी संदृष्टि ऐसे ही यथासंभव जानि लेनी । बहुरि इहां रचना पहिले निषेकनिकी नीचे लिखिए है पिछले निषेकनिकी ऊपरि लिखी है। ऐसे ही अन्यत्र जानि लेनी । बहुरि गुणश्रेणि निर्जराके कथनविर्षे ऐसी रचना करनी उपरि सनस्थिति आयाम गुणश्रेणिमायाम उदयावली ४ इहां अपकर्षण कीएं पीछै जो हीन क्रम लीएं निषेक रचना रही ताकी ऐसी A संदृष्टि करि बहुरि निक्षेपण कीया द्रव्यकी सहनानी दूसरी लकीरकरि रचना करी। तहां उदयावली पर्यंत निषेकनिविर्षे हीन क्रम लीएं द्रव्य दीया तातै हीन क्रम लीएं दूसरी लीक करी । अर ताके ऊपरि गुणश्रेणि कालविर्षे असंख्यातगुणा अधिक क्रम लीएं द्रव्य दीया तातें अधिक क्रम लीएं दूसरी लीक करी । ताके ऊपरि उपरितन स्थितिविर्षे हीनक्रम लीएं द्रव्य दीया तातें हीनक्रम लीएं दूसरी लीक करी। बहुरि ऊपरि अतिस्थापनावलीविर्षे द्रव्य दीया ही नाही जातें दूसरी लीक न • करी । बहुरि इहां उदयावलीका अंत निषेकविर्षे दीया द्रव्यतै गुणश्रेणिका प्रथम निषेकविषै दीया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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