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________________ क्षपणासार द्रव्य और मिलाये तहाँ दो बडा लीक, तहां पूर्वं घटता क्रम था अर दीया द्रव्य का बधता क्रम है वा पूर्व बधता क्रम था, दीया द्रव्य घटता क्रम लीए है तिनका औसी संदृष्टि जाननी। बहुरि नीचले ऊपरले निषेकनि विषै जैसैं जैसैं विधान होइ तैसे तैसैं नीचे ऊपरि रचना लिखनी। बहुरि समपट्टिकाविष समरूप रचना ऐसी करनी बहुरि अनुभाग आदि तिर्यग् रचनाविर्षे आडी रचना करनी । तहां समपट्टिकाकी सूधी ऐसी ।। घटता क्रमकी ऐसी करनी इत्यादि अनेक प्रकार हैं। सो आगें जहां संदृष्टि लिखेंगे तहां तिनका स्वरूप भी लिखेंगे सो जानना। तहाँ पहले प्रथमोपशम सम्यक्त्वका विधानकी संदृष्टि कहिए है तहां प्रकृतिनिका बंध उदय सत्त्ववि कूट रचना गोम्मटसारका स्थान समुत्कीर्तन अधिकारविषै जैसैं कही है तैसैं इहां संभवती जानि लेनी' बहुरि तीनों करणनिकी संदृष्टि गोम्मटसारका संदृष्टि अधिकारविषै गुणस्थानाधिकारविर्ष जैसैं कही है तैसे जाननी । बहुरि अपकर्षण उत्कर्षणका कथनविष परमाणनिकी अपेक्षा घटता क्रम लीएँ जे निषेक तिनकी ऐसी संदृष्टि करि तहाँ अपकर्षणविषै जघन्य अतिस्थापन, जघन्य निक्षेपकी संदृष्टिविषै तो जघन्य अतिस्थापन अर जघन्य निक्षेप अर ग्रया हूवा निषेक इनका विभागके अथि ऐसी वीचिमें लोककरि तहां आवलीकी संहनानी इहां सोलह तामैं एक धटाएं पंद्रह ताका त्रिभाग एक अधिक प्रमाण नीचले निषेक जघन्य निक्षेप है। अर तामैं पंद्रहका दोय त्रिभागमात्र बीचिके निषेक जघन्य अतिस्थापन अर ताके ऊपरि ग्रहया हुआ निषेक एक लिखना अर ताके ऊपरि अपकर्षणके अन्य भेदनिके अथि विदी लिखनी । बहुरि उत्कृष्ट निक्षेप अतिस्थापनकी संदृष्टिविणे नीचे तो आबाधावलो अर ऊपरि उत्कृष्ट निक्षेप, ताके ऊपरि उत्कृष्ट अतिस्थापन, ता ऊपरि ग्रहया हूवा अंतका निषेक स्थापना। इहां आबाधाविर्षे निषेक रचना नाही है तातें ऊभी लकीर ही करनी । अर अतिस्थापन ग्रया निषेकका विभागके थि निषेक रचनाके वीचिमें लकीर करनी, तहाँ आवलीकी सहनानी च्यारिका अंक, उत्कृष्ट निक्षेपविषै कर्मस्थितिकी संहनानी ऐसी (क) ताके आरौं घटावनेकी सहनानी जैसी (-) बहुरि ताके आगें हीनका प्रमाण एक समय .१. बड़ी टीका ६०० से लेकर पूरे प्रकरण से उपयोगी कट रचना लो । २. बडी टीका गो-जीवकाण्ड पृ० १०२ से लेकर १५७ तक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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