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________________ बहुरि कर्मनिका अपने काल आएं फ़ल देनेरूप होइ खिरनेकौं सन्मुख होना सो उदय है सो च्यारि प्रकार-प्रकृति उदय १ प्रदेश उदय २ स्थिति उदय ३ अनुभाग उदय ४। तहां यथासंभव मूल प्रकृति वा उत्तर प्रकृतिका फल देनेरूप उदय आवना सो प्रकृति उदय है। बहरि तिस उदयरूप प्रकृतिके जे परमाणू खिरनेकौं सन्मुख होइ उदय आवें सो प्रदेश उदय है। तहां अनेक समयनिविर्षे बंधे समयप्रबद्धनिका तिर विवक्षित एक समयविर्षे उदय आवने योग्य जे निषेक तिन सब निषेकनिके परमाण तिस विवक्षिन एक समयविर्षे उदय हो हैं सो कहिए है जिस समयप्रबद्धका एकहू निषेक न गल्या ताका प्रथम निषेक उदय हो है। जाका प्रथम निषेक पूर्वं गल्या ताका द्वितीय निषेक तहां उदय हो है । असै क्रमते जाके दोय निषेक अवशेष रहे ताका तहां उपांत निषेक उदय हो है । जाका एक निषेक ही अवशेष रह्या ताका सोई अंत निषेक तहां उदय हो है । असे सर्व निषेक मिली एक समयप्रबद्धमात्र परमाणूनिका उदय हो है। बहुरि तहां उदीरणा उत्कर्षण अपकर्षण आदिका वशतें विशेष है सो कहिए है-- ऊपरले नीचले अन्य समयनिवि उदय आवने योग्य निषेकनिके परमाणु तिस विवक्षित समयविर्षे उदय आवने योग्य निषेकनिविषं मिलाया होइ तौ ते परमाण भी तिनही की साथि तिसही समयवि. उदय हो हैं । जैसे अंक संदष्टि करि तरेसठिसै परमाण तो तिस समय उदय आवने योग्य निषेकनिके थे अर हजार परमाण अन्य निषेकनिके तहां मिलाए तौ तहां तिहत्तरिसै परमाणनिका उदय हो है। असै ही तिस समयविष उदय आवने योग्य निषेक तिनिके परमाणु अन्य निषेकनिविषै मिलाए होंइ तौ तहां तिनिके अवशेष परमाणू उदय हो हैं। जैसे तिरेसठिसै परमाणू तिस समयवि उदय आवनेयोग्य निषेकनिके थे तिनमैं हजार परमाणु अन्य निषेकनिविर्षे मिलाए तौ तहाँ तरेपनसै परमाणनिहीका उदय हो है। बहुरि तिस समय विर्षे उदय आवने योग्य निषेकनिका केतेइक परमाणू अन्य निषेकनिविर्षे अन्य निषेकनिका परमाणू तिनविर्षे मिलाए होंइ तौं तहां जेते परमाणू हीन अधिक भए तिनिहीका उदय हो है । जैसैं तिरेसठिसै परमाणू तिस समय उदय आवने योग्य निषेकके थे तिनमै सातसै परमाण तो अन्य निषेकनिके मिले अर हजार परमाणू अन्य निषेकनिविर्षे दीए तौं तिस समयविष छ हजार परमाणु ही का उदय हो है । औस उदीरणादिककी अपेक्षा विशेष जानना । बहुरि विवक्षित एक समयविर्षे जे तिस समयविष उदय आवने योग्य निषेक तिनिका ही उदर ताका उदय होतें सत्तारूप स्थितिविर्षे एक समय घट है, तातै तहां एक समयमात्र स्थिति उदए जानना। बहुरि कांडकविधानसे अनेक समयमात्र स्थिति घटाइए है सो विधान आगै लिखेंगे। बहुरि तिस एक समय विर्षे अनुभागका उदय होना सो अनुभाग उदय है । तहां तिस समयविष उदय आवने योग्य परमाणू निविर्षे पूर्वोक्त प्रकार अविभागप्रतिच्छेद वर्गणा स्पर्धक आदि विशेष जानना । बहुरि जो उत्कर्षण अपकर्षण कांडकादि विधानतें अनुभागका घटना बधना भया होइ तौ तहां जैसा अनुभाग संभवै तितनाहीका उदय जानना । इहां प्रश्न-जो तिस समय विषै उदय आवने योग्य परमाणनिविर्षे कोई परमाणविषै स्तोक अनुभाग है कोई विर्षे बहुत है तिनि सबनिका एक समय विर्षे कैसे उदय हो है ? ताका समाधान-जैस कोई वस्तु स्तोक शीतलता करनेकौं कारण है कोई बहुत शीतलता करनेकौं कारण है तिनि सबनिकी गोली एक भई ताका एक काल भक्षण कीया तहां सबनिकी शीतलता मिलै जैसी शीतलता होनी संभवै तैसी भक्षण करनवालोकै शीतलता हो है तैसें कोई परमाणूनिविर्षे स्तोक अनुभाग है कोई विर्षे बहुत अनुभाग है तिनि सबनिका एक निषेक भया ताका एक कालविर्षे उदय आया तहां सबनिका अनुभाग मिलैं जैसा अनुभाग होना संभवै तैसा उदयवालेकै अनुभाग उदय हो है। सामान्यपनै च्यारि प्रकार अनुभाग यथासंभव तहां जानना । जैसे उदयका स्वरूप कह्या । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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