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________________ बहरि अपक्वपाचन कहिए जो पच्या नाही-उदय कालकों प्राप्त न भया जो कर्म ताका पाचन कहिए पचावना उदय कालविर्षे प्राप्त करना असा है लक्षण जाका सो उदीरणा कहिए है। तहां वर्तमान समयतें लगाए आवलीमात्र कालविष उदय आवने योग्य जे निषेक तिनिका नाम उदयावली है। ताके ऊपरिवर्ती निषेकनिकौं उदयावलीबाह्य कहिए है। तहां उदयावली बाह्य तिष्ठते जे निषेक तिनके परमाणू निकौं उदयावलीके निषेकनिविषै मिलावना। असैं बहुत कालविर्षे उदय आवते ते अपक्व कहिए, तिनिकों उदयावलीके निषेकनिका साथी उदय होने योग्य करना सो पाचन कहिए असा कार्य जिस समयविष होइ तिस समयविर्षे उदीरणा नाम पावै है । तिस समयविष पीछे सोई द्रव्य सत्तारूप वा उदयरूप कहिए है । जैसे उदीरणाका स्वरूप कह्या । बहुरि स्थिति अनुभागका बंधना ताका नाम उत्कर्षण है। तहां स्तोक कालमैं उदय आवने योग्य जे नीचेके निषेक तिनिके परमाणू ते बहत कालमें उदय आवने योग्य जे ऊपरिके निषेक तिनिवि. मिलैं औसैं स्तोक स्थितिका बहुत स्थिति होने का नाम स्थिति उत्कर्षण है। बहरि स्तोक अनुभागयुक्त जे नीचेके स्पर्धक तिनिके परमाणू ते बहत अनुभागयुक्त जे ऊपरिके स्पर्धक तिनिविषं मिलें असें स्तोक अनुभागका बहुत अनुभाग होनेका नाम अनुभाग उत्कर्षण है। बहुरि जैसे ही स्थिति अनुभागके घटनेका नाम अपकर्षण जानना । तहाँ बहुत कालमें उदय आवने योग्य जे ऊपरिके निषेक तिनके जे परमाणु ते स्तोक कालमै उदय आवने योग्य जे नीचेके निषेक तिनिविषं मिलें औसैं बहत स्थितिका स्तोक स्थिति होनेका नाम स्थिति अपकर्षण है । बहुरि बहुत अनुभागयुक्त जे ऊपरिके स्पर्धक तिनिके जेते परमाणू ते स्तोक अनुभागयुक्त जे नीचेके स्पर्धक तिनिविर्षे मिलें असें बहुत अनुभागका स्तोक अनुभाग होनेका नाम अनुभाग अपकर्षण है । बहुरि तहाँ विवक्षित सर्व परमाणूनिके समूहकौं उत्कर्षण वा अपकर्षण भागहारका भाग दीएं जो एक भागमात्र परमाणु तिनिकौं ग्रहि यथायोग्य नीचे वा ऊपरि मिलाइए तहाँ उत्कर्षण वा अपकर्षणका होना संभव है। सो उत्कर्षणका वा अपकर्षण भागहारका प्रमाण आगे कहिए है जो गुणसंक्रम भागहार तातें तो असंख्यातगुणा अर अधःप्रवृत्त संक्रम भागहारके असंख्यातवे भाग असा पल्यके अर्धच्छेदनिके असंख्यातवां भागमात्र जानना । औसै उत्कर्षण अर अपकर्षणका स्वरूप कह्या ।। बहुरि अन्य प्रकृतिका परमाणू अन्य प्रकृतिरूप जो होइ ताका नाम संक्रमण है । जैसैं संक्लेशपनेतें पूर्वे असाता वेदनी बांधी थी पीछे विशुद्धताके बलतें ताका परमाणू साता वेदनीयरूप होइ परिणमैं । जैसेही यथायोग्य अन्य प्रकृतिका भी संक्रम जानना। तहाँ संक्रमण होनेविष पांच प्रकार भागहार संभवै है-उद्वेलन १ विध्यात २ अधःप्रवृत्त ३ गुणसंक्रम ४ सर्वसंक्रम ५ । सो इनका कथन गोम्मटसारका कर्मकांडविर्षे पंच भागहार चूलिका अधिकार है तहाँ जानना वा यहां यथावसर कहेंगे । किछू स्वरूप अब भी कहिए है ___ उद्वेलन प्रकृतिके जे परमाणू तिनकौं उद्वेलन भागहारका भाग दीएं एक भागमात्र परमाणू जहाँ अन्य प्रकृतिरूप होइ परिणमै तहां उद्वेलन संक्रमण कहिए । बहुरि जहां मंद विशुद्धतायुक्त जीवकै जाका बंध न पाइए असी जो विवक्षित प्रकृति ताके परमाणूनिकौं विध्यातभागहारका भाग दीएं एक भागमात्र परमाणू अन्य प्रकृतिरूप होइ परिणमैं तहां विध्यात संक्रमण कहिए । बहुरि जहां जाका बंध संभव असी जो विवक्षित प्रकृति ताके परमाणूनिकौं अधःप्रवृत्त भागहारका भाग दोएं एक भागमात्र परमाणू अन्य प्रकृतिरूप होइ परिणमै तहां अधःप्रवृत्त संक्रमण कहिए। बहुरि जहां विवक्षित अशुभ प्रकृतिके परमाणूनिकौं गुणसंक्रमण भागहारका भाग दीएं एक भागमात्र परमाणू अन्य प्रकृतिरूप होइ परिणमैं । बहुरि प्रथम समय जेती परमाणू परिणई, तातें दूसरे समय असंख्यातगुणी परिणमैं, तातें तीसरे समय असंख्यातगुणी परिणमैं असैं समय समय गुणकार संभवै तहां गुणसंक्रमण भागहार कहिए। बहुरि तहां विवक्षित प्रकृतिके परमाणू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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