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________________ यानिका निब कांजीर विष हलाहलसमान अर प्रशस्त अघातियानिका गुड खंड शर्करा अमृतसमान च्यारि भाग जानने । बहरि घातियानिविष लता भागके अर केताइक दारु भागके स्पर्धक देशघाती हैं। अवशेष सर्वघाती हैं। सो विशेष आगे आवेगा असे अनुभागविषै विशेष है। सो स्थितिसंबंधी एक एक निषेकके परमाणूनिविर्षे असा अनुभागका विशेष पाइए है । जैसें स्थितिके पहिले निषेक पहलै उदय आवै पिछले पोछे उदय आवै तैसें अनुभागके पहिले स्पर्धक पहिले उदय आवनेका पिछले स्पर्धक पीछे उदय आवनेका नियम नाहीं है। बहुरि सामान्यपने जहां जो उत्कृष्ट अनुभाग पाइए सोई तहां अनुभागबंधका प्रमाण कहिए है । अस बंधका स्वरूप कह्या। बहरि अनेक समयनिविष बंधे हए कर्मनिका विवक्षित कालादिकविष जीवकै अस्तित्व ताका नाम सत्त्व है सो च्यारि प्रकार प्रकृतिसत्व १ प्रदेशसत्त्व २ स्थितिसत्त्व ३ अनुभागसत्त्व ४ । तहां अनेक समयनिविर्षे बंधी जो ज्ञानावरणादिक मूल प्रकृति वा तिनकी उत्तर प्रकृति तिनिका जो अस्तित्व सो प्रकृतिसत्व है। बहुरि तिनि प्रकृतिरूप परिणमी असे जे अनेक समयनिविणे बंधी ग्रही हुई पुद्गल परमाणु तिनिका अस्तित्व सो प्रदेशसत्व है, सो समय समय वि एक एक समयप्रबद्ध ग्रहे तिनके पूर्वोक्त प्रकार एक एक निषेक क्रमतें निर्जरै। तहां जिनि समयप्रबद्धनिके सर्व निषेक गले तिनिका तो अस्तित्त्व रह्या ही नाही । बहुरि कोई समयप्रबद्धका अन्य निषेक गलि एक निषेक अवशेष रह्या, कोईके अन्य निषेक गलि दोय निषेक अवशेष रहै । असै क्रमतें जाका एक निषेक गल्या ताके तिस विना सर्व निषेक अवशेष रहै हैं। जाका कोई निषेक न गल्या ताके सर्व ही निषेक अवशेष रहें । असे अवशेष रहे समस्त निषेक तिनके परमाणूनिका मिल्या हुवा प्रमाण किंचित् उन ड्योढ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण है। सो याका विधान गोम्मटसारका कर्मस्थिति रचना सदभाव अधिकारविर्षे त्रिकोण रचना कर दिखाया है सो जानना । जैसे इनि परमाणूनिका अस्तित्व सो प्रदेशसत्व जानना । इहां जो एक प्रकृतिको विवक्षा होइ तो एक प्रकृतिसंबंधी समयप्रबद्ध ग्रहण करना। जो सर्व प्रकृतिको विवक्षा होइ तौ सर्व प्रकृतिसंबंधी समयप्रबद्ध जानना । बहुरि तिनि अनेक समयनि विष बंधी प्रकृतिनिकी स्थिति ताका नाम स्थितिसत्व है तहां तिनि प्रकृतिनिका जिस समयप्रबद्धका एक निषेक अवशेष रह्या ताकी एक समयकी स्थिति है, जाका दोय निषेक अवशेष रहे ताके प्रथम निषेककी एक समय अर द्वितीय निषेकको दोय समय स्थिति है। औसै क्रमतें जाका एक हू निषेक न गल्या ताकी प्रथमादि निषेकनिकी एक दोय आदि समयनिकरि अधिक आबाधाकालमात्र स्थितिका क्रमकरि तहां अंत निषेककी संपूर्ण स्थितिबंधमात्र स्थिति है। इहां सत्वविर्षे अनेक समयप्रबद्धनिके एक समयविषै उदय आवने योग्य अनेक निषेक मिलैं जो होइ सो एक निषेक जानना। सो इनि विष परमाणुनिका प्रमाण आगे कहेंगे। बहुरि सामान्यपनै जो एक प्रकृतिकी विवक्षा होइ तो ताके पहिले बंध्या वा पीछे बंध्या समयप्रबद्धनिवि जाके बहुत निषेक सत्ताविर्ष पाइए तिस समयप्रबद्धके अंतका निषेककी जेती स्थिति तिस प्रमाण स्थितिसत्व कहना। अर सर्व प्रकृतिको विवक्षा होइ तौ जिस प्रकृतिका समयप्रबद्धके अंत निषेकको बहुत स्थिति होइ ताका अंत निषेककी स्थितिप्रमाण स्थितिसत्व कहना । बहुरि तिन अनेक समयनिविष बंधी जे प्रकृति तिनिका जो अनुभाग सत्तारूप है ताका नाम अनुभागसत्व है । तहां एक समयविष उदय आवने योग्य अनेक समयप्रबद्धनिके निषेक मिलि भया सत्तासंबंधी एक निषेक ताके परमाणु निविष अथवा अनेक समयनिविष बंधे समयप्रबद्धनिके गले पीछे अवशेष निषेक रहे तिन सबनिके परमाणनिविष पूर्वोक्त प्रकार अविभागप्रतिच्छेद वर्ग वर्गणा स्पर्धकरूप अनुभागका विशेष जानना । तहां परमाणूनिका प्रमाण पूर्वोक्त प्रकार ल्यावना। बहुरि सामान्यपनैं तहां पूर्वोक्त ज्यारि प्रकार अनुभागका ग्रहण जानना । असे सत्वनिका निरूपण कीया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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