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केवली जिनके कवलाहारका निषेध
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समयस्थितिको बंधः सातस्योदयात्मको यतः, तस्य ।
तेन असातस्योदयः सातस्वरूपेण परिणमति ॥६१७॥ स० चं०-जातें केवलीकै एक समयमात्र स्थिति लीएं सातावेदनीयका बंध हो है सो उदयरूप ही है, तातै ताकै असाताका उदय है सो भी सातारूप होइ परिनमै है । जातें इहां परम विशुद्धताकरि साताका अनुभागकी बहुत अधिकता पाइए है, तात असाताजनित क्षुधादि परिषहकी वेदना नाही है । वेदना विना ताका प्रतिकाररूप आहार कैसे संभव है ? ॥६१७॥
इहां कोऊ कहै कि जो आहार न संभवै तौ शास्त्रनिविर्षे केवलीकै आहार मार्गणाका सद्भाव कैसे कह्या हैं ? सो कहिए है
पडिसमयं दिव्वतमं जोगी णोकम्मदेहपडिबद्धं । समयपबद्धं बंधदि गलिदवसेसाउमेत्तठिदी ॥६१८॥ प्रतिसमयं दिव्यतमं योगी नोकर्मदेहप्रतिबद्धम् ।
समयप्रबद्धं बध्नाति गलितावशेषायुर्मात्रस्थितिः ॥६१८॥ स० चं०-सयोगी जिन है सो समय समय प्रति नोकर्म जो औदारिक शरीर तीहिसम्बन्धी जो समयप्रबद्ध ताको बाधे है ग्रहण करै है। ताकी स्थिति आयु व्यतीत भएं पीछे जेता अवशेष रह्या तावन्मात्र जाननी। सो नोकर्मवर्गणाका ग्रहण हीका नाम आहारमार्गणा है, ताका सद्भाव केवलीकै है, जातै ओज १ लेप्य १ मानस १ केवल १ कर्म १ नोकर्म १ भेद से छह प्रकार आहार है। तहां केवलीकै कर्म-नोकर्म ए दोय आहार संभवै हैं। साता वेदनीयका समयप्रबद्धकौं ग्रहै है सो कर्म आहार है । औदारिक शरीरका समयप्रबद्ध ग्रहै है सो नोकर्म आहार है ।।७१८।।
णवरि समुग्धादगदे पदरे तह लोगपूरणे पदरे । णत्थि तिसमये णियमा णोकम्माहारयं तत्थ ॥६१९।। नवरि समुद्धातगते प्रतरे तथा लोकपूरणे प्रतरे।
नास्ति त्रिसमये नियमात् नोकर्माहारकस्तत्र ॥६१९॥ स० चं०-इतना विशेष जो केवल समुद्धातकौं प्राप्त केवलीविष दोय तौ प्रतरके समय अर एक लोकपूरणका समय इनि तीन समयनिविर्षे नोकर्मका आहार नियमत नाही है, अन्य सर्व सयोगी जिनका कालविर्षे नोकर्मका आहार है ॥६१९।।
अब इहाँ समुद्धात कब हो है सो कहना-तहाँ क्षीणकषायके अंतरि इर्यापथबंधको कारण जौ योग तिनकरि सहित जो तीर्थकर केवली भया सो समवसरणविष मंडपके मध्य तीन पीठिका ऊपरि जो सिंहासन तीहिविर्षे विराजमान है। अष्ट प्रातिहार्य चौंतीस अतिशयसहित है। धातुमलरहित, परम औदारिक शरीरसहित है। सर्व लोकपूज्य है। बहुरि एक योजन विर्षे तिष्टते ऐसे दूर वा निकटवर्ती तिथंच वा मनुष्य वा देव तिनको अठारह महाभाषा सातसै क्षुल्लकभाषा ताके आकारि तद्रूप परिनम्या ऐसा जो दिव्यध्वनि ताकरि आसन्न भव्य जीवनिकौं संसारतें पार करै है। जैसे बिना इच्छा चंद्रमा समुद्रकौं बंधावै है तैसैं अबुद्धिपूर्वकपनैं केवली जगतका