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________________ क्षपणासार अव इहां कोऊ कहै कि केवली असातावेदनीयके उदयतें क्षुधादि परीषह पाइए हैं ता आहारादि क्रिया संभव हैं तिस प्रति क है हैं ४९२ जं णोकसायविग्घचउक्काण बलेण दुक्खपहुदीणं । असुहपयडिणुदयभवं दंदियखेदं हवे दुक्खं ।। ६१४।। यत् नोकषायविघ्नचातुष्काणां बलेन दुःखप्रभृतीनाम् । अशुभप्रकृतीनामुदयभवं इंद्रियखेदं भवेत् दुःखं ॥ ६१४ ॥ स० चं०—जो नोकषाय अर अन्तरायचतुष्क इनका उदयके वलकरि दुःखरूप असता वेदी आदि अशुभ प्रकृतिनिका उदय करि उपज्या ऐसा इंद्रिय कैं खेद आकुलता ताका नाम दुख है । सो केवली नाहीं संभवे है || ६१४ || जं णोकसायविग्घचउक्काण वलेण सादपहुदीणं । सुहपयडीणुदयभवं इंदियतोसं हवे सोक्खं ।। ६१५ ।। यत् नोकषायविघ्नचतुष्काणां बलेन सातप्रभृतीनां । शुभप्रकृतीनामुदयभवं इंदियतोषं भवेत् सौख्यं ।। ६१५ ।। स० चं० – जो नोकषाय अर अन्तराय चतुष्कका उदयके वलकरि सात वेदनीय आदि शुभ प्रकृतिनिका उदयकरि उपज्या इन्द्रियनिके संतोष किछू निराकुलता ताका नाम इंद्रियजनित सुख है सो भी केवली नाहीं संभबे है ।। ६१५ ।। य रायदोसा इंदिणाणं च केवलिम्हि जदो । ते दुसादासादजसुहदुक्खं णत्थि इंदियजं ॥ ६१६ ॥ नष्टौ च रागद्वेषौ इंद्रियज्ञानं च केवलिनि यतः । तेन तु सातासातजसुखदुःखं नास्ति इंद्रियजं ॥ ६१६।। स० चं० - जातै केवलीविषै राग द्वेष नष्ट भए हैं । बहुरि इंद्रियजनित ज्ञान भी नष्ट भया है, तातै साता असातावेदनीयका उदयकरि निपज्या ऐसा इन्द्रियजनित सुख दुःख नाही है । इस हेतु यह सिद्ध भया जो कारणके सद्भावते केवली असातावेदनीयके उदयतै उपजे ऐसे परीषह उपचारमात्र कहिए है, तथापि तिनका दुःख नाहीं व्यापे है, जातै घातिकर्मनिका उदय केवल होतें वेदनीयका उदयतें सुख दुःख व्यापै है । जैसे उपघात परघात नाम कर्मका उदय होतें भी घाति कर्मनि वल विना अपना वा अन्यका घात न हो है जो ऐसें न होइ तो परीषहनिके निमित्ततैं केवलीकौं दुःख होइ तव लाभके अर्थि कार्य करै । जैसे मूल नाश होइ तैसें यहु कार्य भया सोन संभव है ताते केवली भोजन हैं ऐसा वचन अयुक्त है ।। ६१६ ।। अब अन्य हेतु हैं हैं समयडिदिगो बंध सादस्सुदयप्पिगो जदो तस्स । तेण असादस्सुदओ सादसरूवेण परिणमदि || ६१७ |
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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