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________________ ४८८ क्षपणासार ऐसैं पुरुषवेद सहित चढ्या च्यारि प्रकार जीवनिके विशेषका वर्णन कीया अर स्त्रीवेद सहित चढे च्यारि प्रकार जीवनिकै विशेष कहिए है पुरिसोदएण चडिदस्सित्थीखवणद्वंतं पढमठिदी। इत्थिस्स सत्तकम्मं अवगदवेदो समं विणासेदि' ॥६०६।। पुरुषोदयेन चटितस्य स्त्रीक्षपणाद्धांतं प्रथमस्थितिः । स्त्रिया सप्तकर्माणि अपगतवेदः समं विनाशयति ॥६०६॥ स० चं०-स्त्रीवेदसहित चढ्या जीवकै यावत् अंतरकरण न होइ तावत् प्ररूपणा सर्व समान है। बहरि अंतरकरण करता संता यह पुरुषवेदकी प्रथम स्थिति नाहीं करै है। स्त्रीवेदहीकी प्रथम स्थिति स्थापै है, जातें जिस वेदका कषायके उदै श्रेणी चढे ताहीका प्रथम स्थिति स्थापै है। तिस स्त्रीवेदकी प्रथम स्थितिका प्रमाण पुरुषवेदका उदयसहित श्रेणी चढ्या जीवकै जितना नपुंसक वेदका क्षपणा काल सहित स्त्रीवेदका क्षपणा काल होइ तितना जानना । बहुरि नपुसकवेदकी वा स्त्रीवेदकी क्षपणा करनेवि स्त्रीवेदसहित चढ्या जीवकै पुरुषवेद सहित चढ्या जीवक समान काल है । बहुरि ताके ऊपरि पुरुषवेदसहित चढ्या जीव है सो तो पुरुषवेदका उदययुक्त हुवा सप्त नोकषायका क्षपणा कालविर्षे सप्त नोकषायनिकौं क्षपावै है। तहां पुरुषवेदके नवक समय प्रबद्धनिकौं ताके पीछे समय घाटि दोय आवली काल वि क्षपावे है। बहुरि यह स्त्रीवेदसहित चढ्या जीव है सो वेद उदयकरि रहित होत संता सप्त नोकषायका क्षपणा कालविषै सर्व सप्त नोकषायनिकौं क्षपावै है। पुरुषवेदका बंध याकै नाही है, तातै नवक समयप्रबद्धका पीछे खिपावना याकै न संभवे है। बहरि ताके ऊपरि अश्वकर्णादि क्रियानिविष जैसैं परुषवेदसहित चढे च्यारि प्रकार जीवनिका विशेष कह्या तैसे ही स्त्रीवेदसहित चढे च्यारि प्रकार जीवनिका विशेष वर्णन जानना ॥६०६॥ अब नपुंसकवेद सहित चढे च्यारि प्रकार जीवनिका व्याख्यान करिए है-- थीपढमहिदिमेत्ता संढस्स वि अंतरादु संढेक्क । तस्सद्धा त्ति तदुवरि संढं इत्थि च खवदि थीचरिमे ।। अवगयवेदो संतो सत्त कसाये खवेदि त्थीचरिमे।। पुरिसुदये चडणविही सेसुदयाणं तु हेढुवरि ॥६०८।। स्त्रोप्रथमस्थितिमात्रा पंढस्यापि अंतरात् षंढेकः । तस्याद्धा इति तदुपरि षंढं स्त्री च क्षपयति स्त्रीचरमे ॥ ६०७ ॥ अपगतवेद: संतः सप्त कषायान् क्षपयति स्त्रीचरमे। पुरुषोदयेन चटनविधिः शेषोदयानां तु अधस्तनोपरि ॥ ६०८॥ स० चं०-नपंसकवेदसहित श्रेणि चढ्या जीवकै यावत् अन्तरकरण न करिए तावत् सर्व प्ररूपणा समान है, ताके ऊपरि पुरुषवेदकी प्रथम स्थिति नाही स्थाप है, नपुंसकवेदहीकी प्रथम १. क० चु०, पृ० ८९३ । २. क० चु० पृ० ८९३-८९४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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