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________________ ४८१ विशेष - जब मोहनीय के संख्यात हजार स्थितिकांडकोंका घात करके अन्तिम स्थितिकांडक के घातका समय प्राप्त हो तब जो गुणश्र णिनिक्षेपणका काल सूक्ष्मसांपरायके कालसे विशेष अधिक कहा था उस गुण णिनिक्षेपके अग्र भागको ग्रहण कर और उसे सूक्ष्मसांपरायके कालके बराबर करता हुआ उस सबको अन्तिम काण्डकके बराबर करता है । केवल इतना ही नहीं करता, किन्तु जो सूक्ष्मसांपराय के कालसे मोहनीयकी अधिक स्थितियाँ हैं जो कि गुणश्र णिशीर्षसे संख्यातगुणी हैं उन्हें भी अन्तिम स्थितिकाण्डकरूपसे ग्रहण करता है, क्योंकि उनके विना गुणक्षेणिशीर्षका ग्रहण करना सम्भव नहीं है । तात्पर्य यह है कि गुणश्र णिशीर्ष और उससे संख्यातगुणी स्थितियोंको अन्तिम स्थितिकाण्डकके बराबर करता है । निक्षेपसम्बन्धी शेष कथन जयधवलासे जान लेना चाहिये । उभयद्रव्यप्ररूपणा एतो हुमंतो त्तिय दिज्जस्स य दिस्समाणगस्स कमो । सम्मत्तचरिमखंडे तक्कदकज्जे वि उत्तं व' ॥ ५९६ ॥ इतः सूक्ष्मांत इति च देयस्य च दृश्यमानस्य क्रमः । सम्यक्त्वचरमखंडे तत्कृतकार्येऽपि उक्तमिव ॥ ५९६ ॥ स० चं० - इहांत लगाय सूक्ष्मसांपरायका अन्तपर्यन्त देय द्रव्य अर दृश्यमान द्रव्यका क्रम है । जैसे क्षायिक सम्यक्त्व विधानविषै सम्यक्त्व मोहनीयका अन्त स्थितिकांडकविषै वा ताका कृतकृत्यपनाविषै कहा था तैसें ही जानना । सो कहिए है सर्व मोहक स्थितिविषै सूक्ष्मसांपरायका जितना काल अवशेष रहया तितनी स्थिति बिना अवशेष सर्व स्थितिका घात अन्त कांडककरि कीजिए है । तहां इस कांडककी स्थितिके निषेकनिका द्रव्यविषै जो द्रव्य अन्त कांडकोत्करण कालका प्रथम समयविषै ग्रहया ताकौं प्रथम काल कहिए है । ताके देनेका विधान कहिए है Jain Education International प्रथम फालिद्रव्यकौं अपकर्षणकरि ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभागमात्र द्रव्यकौं इहां सम्बन्धी सूक्ष्मसांपराय कालका अन्त समयपर्यन्त तो गुणश्र णिआयामरूप प्रथम पर्व तिसविषै दीजिए है, तहां तिसके उदयरूप प्रथम निषेकविषै स्तोक, तातैं द्वितीयादि निषेकनिविषे असंख्यातगुणा क्रम लीएं द्रव्य दीजिए है । तहां सर्व गुणकार शलाकाके जोडका भाग तिस द्रव्यकौं देइ अपनी अपनी गुणकार शलाकाकरि गुणं निषेकनिविषै द्रव्य देनेका प्रमाण आ है । इहां सूक्ष्मसांपरायका जो अन्त समय ताका नाम गुणश्रेणिशीर्ष है । बहुरि अवशेष एक भागमात्र जो द्रव्य ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभागमात्र द्रव्यकौं तिसगुण णिशीर्ष ऊपरि पहलें जो गुणश्रेणिआयाम था ताका शीर्षपर्यन्त जो द्वितीय पर्व तिसविषै दीजिए है । तहां तिस द्रव्यकौं द्वितीय पर्वमात्र गच्छका भाग देइ तहां एक भागविषै एक घाटि गच्छका आधा प्रमाणमात्र विशेष जोडें गुणश्रेणिशीर्षके अनंतरि जो निषेक तीहिविषै दीया द्रव्यका प्रमाण आवे है । सो यह गुणश्रेणिशीर्षविषै दीया द्रव्यतें असंख्यातगुणा घाटि है, ताके ऊपर ताके द्वितीयादि निषेकनिविषै चय घटता क्रमलीएं द्रव्य दीजिए है । बहुरि अवशेष १. जयध० ता० मु० पृ० २२१८ । ६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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