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________________ ४८० क्षपणासार कह्या, तातैं अन्तरायामकें अर द्वितीय स्थिति एक गोपुच्छ प्रथम स्थितिकांडकी अन्त फालिका पतन समयविषै ही भया । जहां विशेष घटता क्रम लीएं होइ तहां गोपुच्छ संज्ञा है ।। ५९३ ॥ हुमाणं किट्टीणं हेट्ठा अणुदिण्णगा हु थोवाओ । वरं तु विसेसहिया मज्झे उदया असंखगुणा || ५९४ ।। सूक्ष्माणां कृष्टीनामधस्तना अनुदीर्णका हि स्तोकाः । ऊपरि तु विशेषाधिका मध्ये उदया असंख्यगुणाः ॥ ५९४ ॥ स० चं० – सूक्ष्मसांपरायविषै जे सूक्ष्म कृष्टि हैं तिनिविषे जे जघन्य कृष्टि आदि नीचैकी कृष्टि उदयरूप न हो हैं । तिनिका प्रमाण स्तोक है । बहुरि यात याहीको पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीए तहां एक भागमात्र करि अधिक जे अन्त कृष्टितै लगाय ऊपरली कृष्टि उदयरूप न होइ तिनिका प्रमाण है । बहुरि यातें पल्यका असंख्यातवां भागगुणा जे वीचिका कृष्टि उदयरूप हो हैं तनिका प्रमाण है । इहां सर्व सूक्ष्म कृष्टिनिका प्रमाणकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीएं बहुभागमात्र वीचिकी उदय कृष्टिनिका प्रमाण है । एक भागको अंक सदृष्टि अपेक्षा पांचका भाग दोएं दोय भागमात्र नीचली, तीन भागमात्र ऊपरली अनुदय कृष्टिनिका प्रमाण है। तहां जे अनुदयरूप कृष्टि कहीं ते वीचिकी कृष्टिरूप परिणमि उदय हो हैं ऐसा जानना ।। ५९४ ॥ विशेष - इस गाथाका खुलासा टीकामें किया ही है । विशेष इतना है कि द्वितीयादि समयोंमें भी प्रथम समय के समान कथन करना चाहिए । तथा द्वितीयादि समयोंमें नीचे असंख्यातवें भागप्रमाण अन्य अपूर्व कृष्टियोंकी भी रचना करता है । यह विधि सूक्ष्मसांपरायके अन्तिम समय तक जाननी चाहिये । सुहुमे संखसहस्से खंडे तीदेऽवसाणखंडेण । आगायदि गुणसेढी अग्गादो संखभागे च ॥ ५९५ ।। Jain Education International सूक्ष्मे संख्यसहस्रे खंडेऽतीतेऽवसानखंडेन । आगाप्यते गुणश्रेणी अग्रतः संख्यभागे च ॥ ५९५ ।। स० चं० - पूर्वोक्त क्रमकरि सूक्ष्मसांपरायविषै ताका कालका संख्यात बहुभाग गएं संख्यातवां भाग अवशेष रहैं संख्यात हजार स्थितिकांडक व्यतीत होते अवसान खंड जो अन्तका स्थितिकांडक ताकरि पूर्व गुणश्र ेणि आयामके संख्यातवें भागमात्र आयामविषै गुणश्र णि करे है । इहां पहले सर्व सूक्ष्मसांपराय कालतें साधिक अवस्थित गुणश्र ेणि आयाम था अब जेता अवशेष सूक्ष्मसां परायका काल रह्या तितना गुणश्र णिआयाम जानना ।। ५९५ ।। १. हेट्ठा अणुदिण्णाओ थोवाओ । उवरि अणुदिण्णाओ विसेसाहियाओ । मज्झे उदिष्णाओ सुहुमसांप इयकिट्टीओ असंखेज्जगुणाओ । क० चु० पू० ८७२ । २. सुमसां पराइयस्स संखेज्जसु ठिदिखंडयसहस्सेसु गदेसु जमपच्छिमं ठिदिखंडयं मोहणीयस्स तम्हि ठिदिखंडये उक्कीरमाणे जो मोहणीयस्स गुणसेढिणिक्खेवस्स अग्गग्गादो संखेज्जदिभागो आगाइदो ८७२ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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