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________________ अबहुत्व स्पर्धक करनेकी विधि पढमगुणसेटिसीस पुव्विल्लादो असंखसंगुणियं । उवरिमसमये दिस्सं विसेसअहियं हवे सीसे || ५९१ ॥ प्रथम गुणश्रेणिशीर्षं पूर्वस्मात् असंख्य संगुणितं । उपरिमसमये दृश्यं विशेषाधिकं भवेत् शीर्षे ॥ ५९१ ॥ स० चं० -- प्रथम समयविषै जो गुणश्रेणिशीर्ष है सोई गाथाका अर्थकी जायगा चाहिए ।। ५९१ ।। इसप्रकार प्रथम गुणश्रेणिशीर्ष तक जानना चाहिये । गुणश्रेणिशीर्षके ऊपर पूर्वके द्रव्यसे उपरिम समय में असंख्यातगुणा दृश्य द्रव्य है । आगे मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिके प्राप्त होने तक विशेषहीन प्रदेशपुंज दिखाई देता है ।। ५९१ ।। सुमद्धादो अहिया गुणसेढी अंतरं तु तत्तो दु । पढमे खंड पढ मे संतो मोहस्स संखगुणिदकमा ।। ५९२ ।। सूक्ष्माद्घातः, अधिका गुणश्रेणी अंतरं तु ततस्तु । प्रथमं खंड प्रथमे सत्त्वं माहस्य संख्यगुणितक्रमं ।। ५९२ ।। स० चं० - अंतर्मुहर्तमात्र जो सूक्ष्मसांपरायका काल तातैं ताहीका असंख्यातवां भाग करि अधिक सूक्ष्मस परायका प्रथम समयविषै मोहकी गुणश्रेणिका आयाम है । तातें अंतरायाम संख्यातगुणा है । तातैं सूक्ष्मसांपरायके मोहका प्रथम स्थितिकांडक आयाम संख्यातगुणा है ता सूक्ष्मसां परायका प्रथम समयविषै मोहका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है ।। ५९२ ।। देणपात्रहुगविधाणेण विदीयखंडयादीसु । ४७९ गुणसेढिमुज्झियेया गोपुच्छा होदि सुहुमहि ।। ५९३ ॥ एतेनाल्पबहुकविधानेन द्वितीयकांडकादिषु । गुणश्रेणिमुज्झित्वा एक गोपुच्छं भवति सूक्ष्मे ॥ ५९३ ॥ स० चं० – इस अल्पबहुत्व विधानकरि सूक्ष्मसां परायविषै द्वितीय स्थितिकांडकनिका कालविषै गुण णिकौं छोडि ताके उपरिवर्ती सर्व स्थितिका एक गोपुच्छ हो है । कैसे ? सो कहिए है Jain Education International इहां अंतरायामतें प्रथम स्थितिकांडकायाम संख्यातगुणा कया । तातें प्रथम स्थिति कांडकी जो अन्त फालि ताका द्रव्यविषै अंतरायामविषै देनेयोग्य गोपुच्छरूप द्रव्यकौं अंतरायामविषै देइ द्वितीय स्थितिकै अर इस अंतरायामकै एक गोपुच्छ कीया जो प्रथम स्थितिकांडक आयामतें अंतरायाम बहुत होता तो तहां अन्तरायाम पूर्ण न होता, तब अन्तर स्थितिकै अर द्वितीय स्थिति एक गोपुच्छ न होता । सो इहां अन्तरायामतें प्रथम स्थितिकांडकायाम बहुत १. एवं तात्र जाव गुणसेडिसीसयं । गुणसेढिसीसयादो अण्णा च एक्का ठिदित्ति असंखेज्जगुणं दिस्सदि । तत्तो विसेसहीणं जाव उक्कस्सिया मोहणीयं ठिदित्ति । क० चु० पृ० ८७१ । २. सव्वत्योवा सुहुमसांपराइयद्धा । पढमसमयसुहुमसां पराइयस्स मोहणीयस्स गुणसेढिणिक्खेवो विसेसाहिओ | अंतरद्विदीओ संखेज्जगुणाओ । सुहुमसांपराइयस्स पढमट्ठिदिखंडयं मोहणीये संखेज्जगुणं । पढमसमय सुहुमसां पराइयस्स मोहणीयस्स ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । क० चु० पृ० ८७१ । ३. जयध० ता० मु० पृ० २२१५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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